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ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य
बल्लाल को मालवराज लिखा है, और यह भी लिखा है कि बल्लाल पर चढ़ाई करने वाले सेनापति ने शत्रु का शिर छेद करके कुमारपाल को विजय पताका उज्जयिनी के राजमहल पर फहरा दो । उदयगिरि (भेलसा) में कुमारपाल के दो लेख सं० १२२० और १२२२ के मिले हैं, जिनमें कुमारपाल को अवन्तिनाथ कहा गया है। मालवराज बल्लाल को मार कर कुमारपाल अवन्तिनाथ कहलाया।
मंत्री तेजपाल के प्राबू के लण बसति गत सं० १२८७ के लेख में मालवा के राजा बल्लाल को यशोधवल द्वारा मारे जाने का उल्लेख है ।।
यह यशोधवल विक्रमसिंह का भतीजा था। विक्रमसिंह के कैद हो जाने पर गद्दी पर बैठा था। यह कुमार पाल का मांडलिक सामन्त अथवा भृत्य था, मेरे इस कथन की पुष्टि अचलेश्वर मन्दिर के शिलालेख गत निम्न पद्य से भी होती है
"तस्मान्मही..."विदितान्यकलत्रपात्र, स्पर्शो यशोषवल इत्यवलम्बत स्म।
यो गर्जरक्षितिपतिप्रतिपक्षमाजौ, बल्लालमालभत मालव मेदिनीन्द्रम् ।।" यशोधवल का वि० सं० १२०२ (सन् ११४५) का एक शिलालेख अजरी गांव से मिला है, जिसमें--'प्रमार वंशोदभव महामण्डलेश्वर श्रीयशोधवल राज्ये' वाक्य द्वारा यशोधवल को परमार वंश का मण्डलश्वर सचित किया है । यशोधबल रामदेव का पुत्र था, इसकी रानी का नाम सौभाग्यदेवी था। इसके दो पुत्र थे, जिनमें एक का नाम धारावर्षे और दूसरे का नाम प्रल्हाददेव था। इनमें यशोधवल के बाद राज्य का उत्तराधिकारी धारावर्ष था । वह बहुत ही वीर और प्रतापी था । इसकी प्रशंसा वस्तूपाल तेजपाल प्रशस्ति के ३६वें पद्य में पाई जाती है। धारावर्ष का सं० १२२० एक लेख 'कायदा' गांव के बाहर, काशी विश्वेश्वर के मन्दिर से प्राप्त हुया है। यद्यपि इसकी मृत्यु का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिला, फिर भी उसकी मृत्यु उक्त सं० १२२० के समय तक या उसके अन्तर्गत जाननी चाहिए।
कुमारपाल जब गुजरात की गद्दी पर बैठा, तब चौलूक्यराज के राज्य का विस्तार सुदर प्रान्तों में था। कुमारपाल उसकी व्यवस्था में लगा हुआ था, उसका मंत्री उदयन था। उदयन का तीसरा पुत्र चाहड बड़ा साहसी प्रौर समरवीर था। उस समय चाह्ड किसी कारणवश कुमारपाल से असन्तुष्ट हो शाकंभरी नरेश अर्णोराज से श्रा मिला। उसकी कूट नीति के कारण मालवा का राजा बल्लाल और चन्द्रावती का परमार विक्रमसिह, पौर सपा दलक्ष का चौहान अणोराज ये तीनों परस्पर में मिल गए। इन्होंने कुमारपाल के विरुद्ध जबर्दस्त प्रतिक्रिया को। परन्तु वे उसमें सफल नहीं हो सके । कुमारपाल ने प्रणोंराज से युद्ध कर उसे शरणागत होने को वाध्य किया, और लौटते समय विक्रमसिंह को कैद कर पिजर्ड में बन्द कर ले ग्राया, और उसका राज्य उसके भतीजे यशोधवल को दे दिया। फिर उसने बल्लाल को मारा और इस तरह उसने तीन राजाओं को परास्त कर मालवा को गुजरात में मिलाने का सफल प्रयत्न किया।
बल्लाल की मृत्यु को उल्लेख तो अनेक प्रशस्तियों में मिलता है। बड़नगर से प्राप्त कुमारपाल की प्रशस्ति के १५ श्लोकों में बल्लाल को हार और कुमारपाल की विजय का उल्लेख किया गया है। बड़नगर की
१. रोदः कंदरवति की ति लहरी लिप्तामृतां शुद्धते
रप्रञ्च म्नवशोयशोषदल इत्यासीत्तनुजस्सतः । यनौलुक्य कुमारपाल नृपतिः प्रत्यथितामागतं,
मत्वा सस्वरमेव मालवपति बल्नाल मालब्धवान् ।। २. शत्रु श्रेणी गलविदानोन्निद्र निस्विशधारो, धारावर्षः समजनि मुतस्तस्य विश्व प्रशस्यः ।
कोधाकान्त प्रधनवसुधा निश्चले यत्र जाताश्चोतन्नेत्रोत्पल जलकण: कोकणाधीशपत्न्यः । ३. देग्डो, भारत के प्राचीन राजवंश मा० ११० ७६-७७ । ४. Epigraphica Indica V.3P..२००