Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 537
________________ १५वौं, १६वों, १७वी और १८वीं शताब्दी के आचार्य, मट्टारक और कवि में काष्ठा संघ माथुर गच्छ की भट्टारकीय परम्परा का उल्लेख करते हुए लिखा है कि काष्ठासंघ माथुर गच्छ पुष्कर गण में भट्टारक यशः कीति योर उनके शिष्य गुणभद्र सूरी थे । इससे यह स्पष्ट है कि कवि इन्ही का ग्राम्नाय का था । पर इनमें किसका शिष्य था यह स्पष्ट नहीं लिखा। कवि को एकमात्र कृति 'शान्तिनाथ चरित' है, जिसमें १३ सन्धियां या परिच्छेद और २१० कवक है. जिनकी आनुमानिक श्लोक संख्या पांच हजार है। ग्रन्थ की प्रथम संधि के १२ कडबकों में मगध देश के शासक राजा श्रेणिक और रानी चेलना का वर्णन, श्रणिक का महावीर के समवशरण में जाना और महावीर का वंदन कर गौतम से धर्म कथा का सुनना। दूसरो संधि के २१ कडवकों में विजया पर्वत का वर्णन, प्रकलक कीति को मुक्ति साधना, गौर विजयाक के उपसर्ग निवारण करने का कथन है। तीसरी सन्धि के २३ कडबकों में भगवान शान्तिनाथ की पूर्व भवावली का कथन है। चौथी सन्धि के २६ कडवकों में शान्तिनाथ के भवान्तर, बलभद्र जन्म का पड़ा ही सुन्दर बर्णन किया है । ५वीं मधि के १६ कटवका में बजायुध चक्रवर्ती का सविस्तर कथन है। और छठी संधि के २६ कडवकों में मेघरथ की सोलह कारण भावनामा की प्राराधना, और सथिसिद्धि गमन का वर्णन दिया है। सातवीं सम्धि के २५ कडवकों में मुख्यत: भ० शान्तिनाथ के जन्माभिषेक का वर्णन है। ग्राठवीं तधि के २६ कडवकों में भगवान शान्तिनाथ की कैवल्य प्राप्ति और समवसरण विभूति का विस्तृत वर्णन है। नामी मंधि के २७ कडवकों में भगवान शान्तिनाथ को दिव्य ध्वनि एव प्रवचनों का कथन है। दशवी संधि के २० कडवकों में तिरेसठ शलाका पुरुषों के चरित का संक्षिप्त वर्णन है। ११वीं सधि के ३४ कडवकों में भौगोलिक आयामों का वर्णन है, भरत क्षेत्र का ही नहीं किन्न नाना लाका का सामान्य कथन है । १२वीं संधि के १८ कडवकों में भगवान शान्तिनाथ द्वारा वर्णिन सदाचार का कथन दिया हमा है। और अन्तिम १६वीं संधि के १७ कडवकों में शान्तिनाथ का निर्माण गमन का वर्णन है। यद्यपि कथावस्तु की दृष्टि से ग्रन्थ में कोई नवीनता दृष्टिगोचर नहीं होती, किन्तु काव्यकला और शिल्प की दृष्टि से रचना महत्वपूर्ण है । ग्रन्थ का वर्ण्य विषय पौराणिक है। इसी से उसे पौराणिकता के मांच में डाला गया है। मालोच्यमान रचना अपभ्रश के चरित काव्यों को कोटि की है। इसमें चरितकाव्य के सभी लक्षण परि. लक्षित होते हैं। प्रत्येक संधि के प्रारम्भ में कवि ने अग्रवाल श्रावक साधारण की शान्तिनाथ से मंगल कामना की है। ग्रन्थ रचना में प्ररक जोयणिपुर' (दिल्ली) निवासी अग्रवाल कुलभूषण गर्ग गोत्रीय साह भोजराजका पत्रों (खेमचन्द्र, ज्ञानचन्द्र, श्रीचन्द्र, गजमल्ल और रणमल) में से द्वितीय पुत्र ज्ञानचन्द्र का पुत्र साधारण या जिसकी प्रेरणा से ग्रन्थ की रचना की गई है। कवि ने प्रशस्ति में साधारण के परिवार का विस्तत परिचय कराया है। उसने हस्तिनापर की यायार्थ संघ चलाया था। और जिनमन्दिर का निर्माण करा कर उसकी प्रतिष्ठा सम्पन्न कर पण्यार्जन किया था । ज्ञानचन्द्र की पत्नी का नाम 'सउराजही' था, जो अनेक गुणों से विभूषित थी। उससे तान पत्र हए थे। पहला पुत्र सारंगसाहु था, जिसने सम्मेद शिखर की यात्रा की थी। उसकी पत्नी का नाम 'तिलोकाही' था। दूसरा पुत्र साधारण था, जो बड़ा विद्वान और गुणी था, उसका वैभव बढ़ा चढ़ा था। उसने शत्रुजय को यात्रा को थी, उसकी पत्नी का नाम 'सोवाही' था, उससे चार पुत्र हुए थे-अभयचन्द्र, मल्लिदास, जितमल्ल और सोहिल्ल उनकी चारों पत्नियों के नाम संदणही, भदासही, समदो और भीखणही । ये चारों ही पतिव्रता, साध्वी और धनिष्ठा थीं। इस तरह साह साधारण ने समस्त परिवार के साथ शान्तिनाथ चरित का निर्माण कराया। १. जोयरिणपुर दिल्ली का नाम है । यहाँ ६४ योगिनियों का निवास था, और उनका मन्दिर भी बना हुआ था। इस कारण इसका नाम योगिनीपुर पड़ा है। 'जोयरिखपुर' अपन श भाषा का रूप है। विशेष परिचय के लिये देख, अनेकान्त वर्ष १३ किरण में प्रकाशित दिल्ली के पौध नाम शीर्षक मेरा लेख ।

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