Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 550
________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २ ५३८ टित कराया था। उन्हीं के समसामयिक क्त विद्यालकीर्ति थे, जिनको कवि ने गुरु रूप से उल्लेखित किया है । यद्यपि विशालकीर्ति नाम के कई भट्टारक हो गए हैं, परन्तु प्रस्तुत विशालकीत नागौर के पट्टधर ज्ञात होते हैं। I ग्रन्थ रचना-वाह ठाकुर के दो ग्रन्थ मेरे अवलोकन में आये हैं- महापुराण कलिका, और शान्ति नाथ चरित ये दोनों ही ग्रंथ अजमेर के भट्टारकीय भंडार में उपलब्ध है। इनमें महापुराण कलिका में सठ शलाका पुरुषों का परिचय हिन्दी पथों में दिया है, कहीं-कहीं उसमें संस्कृत पत्र भी मिलते हैं। भाषा में अपभ्रंश और देशी शब्दों का बाहुल्य है। इस ग्रन्थ की रचना कवि ने २७ सन्धियों में पूर्ण को है। इसका रचना काल सं० १६५० है । उस समय दिल्ली में हुमाऊँ नन्दन अकबर का राज्य था । और जयपुर में मानसिंह का राज्य था । कवि ने इस त्रेसठ पुण्य पुरुषों को कथा को अज्ञान विनाशक, भव जन्म छेदन करने वाली, पावनी और शुभ करने वाली बतलाया है । या जन्माभवछेद निर्णयकरी या ब्रह्म बावरी । या संसारविभावभावनपरा या धर्मकमापुरी । अज्ञानादयध्वंसिनी शुभकरी या सदा पावनी, यह वेस डिपुराण उत्तमकमा भव्या सदा यापुनः ॥ महा पुराण कलिका कवि की दूसरी कृति 'शान्ति नाथ पुराण' है जो अपभ्रंश कवि ने उनमें शान्तिनाथ का जीवन परिचय अंकित किया है। जो साधारण है। कवि ने सीधे-सादे शब्दों में जीवन-गाथा पंक्ति की है। पंचमी के दिन चकता वंश के जलालुद्दीन अकबर बादशाह के शासन काल में, मानसिंह के राज्य में नुवाणी पुर में समाप्त किया है। उस समय मानसिंह की राजधानी पामेर थी। कवि की अन्य रचनाओं का अन्वेषण करना श्रावश्यक है । कवि का समय १७वीं शताब्दी का मध्यकाल है। भाषा की रचना है, जिसमें पांच सन्धियाँ हैं । वर्ती कामदेव और तीर्थंकर थे। रचना कवि ने यह विक्रम ० १६५२ भाद्र शुक्ला डाहर देश के कच्छप वंशी राजा मट्टारक विश्वसेन काष्ठा संघ के मन्दिर गच्छ रामसेनान्वय के भट्टारक विशालकीर्ति के शिष्य थे। १. देखो, प्राचीन जैन स्मारक मध्यभारत व राजपुताना पृ० १६६ कति लोके भवति मंडलाचा २. नद्याम्नाये सुगच्छे सुभग श्रुतमले भारतीकारमूर्ते सोमे बंद ठकुरीति नाम विशान।।" ३. संवत् चिति आणि जो जगि जाणी सोलसह पंचासइले । घसटी सुदि माह अरु गुरु लाह रेवती नरिवल पण भले ॥ दुबई कि कवि महापुरिस गुण कलिकाइ संबोधार भवि पोहणार णिइ बुषी पइड भुवणि कवि इणें ॥ ३ ४. साबिर दिल्लीमा नंदन JA पुग्वा पच्छिम कूट दुहाइ उत्तर दक्खिण सब्द अपणा । ५. संवत सोलासह सुभग सालि, बावन वरिस ऊपरि विसालि। महापुराण कलिका सन्धि २३ भादव दि पंचम सुभग बाई, दिल्ली मंडलु देहु मारि अकबर जलालदी पाति साहि वारइ तह राजा मानसाहि । कुरभवंति आरिसानि ढाड देह सोभिराम - शान्तिनाम चरित प्रशस्ति भट्टारकीय अजमेर भण्डार

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