Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 552
________________ ૪ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २ ज्ञातीय अनन्तमती ने कराई थी। श्रीभूषण उक्त पट्ट पर कब प्रतिष्ठित हुए इसका स्पष्ट निर्देश नहीं मिलता । किन्तु पाण्डव पुराण के सं० १६५७ को प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि वे उक्त पट्ट पर प्रतिष्ठित हो चुके थे । सं० १६३४ में इनका श्वेताम्बरों से बाद हुआ था जिससे उन्हें देश त्याग करना पड़ा था। इन्होंने बादिचन्द्र को भी बाद में पराजित किया था । श्रीभूषण के शिष्य भ० चन्द्रकीति ने अपने गुरु श्रीभूषण को सच्चारित्र तपोनिधि, विद्वानों के अभिमान शिखर को तोडने वाला वच्त्र, और स्याद्वादविद्याचरण बतलाया है । यह प्रतिष्ठाचार्य भी थे । इन्होंने सं० १६३६ में पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित की थी। और सं० १६६० में पद्मावती की मूर्ति की प्रतिष्ठा की थी । तत्पट्टाम्बर भूषणंकतरिणः स्याद्वादविद्याचिणो | १| विन्द कुलाभिमान शिखरी प्रध्वंसतीब्राशनिः । सच्चारित्र तपोनिधिधर्मनिवरो विद्वत्सु शिष्यं ब्रजः, श्री श्रीभूषण सूरिराट् बिजयेत् श्री काष्ठा संघाणी ॥७२ आपको निम्न कृतियाँ उपलब्ध हैं पाण्डव पुराण, शान्तिनाथ पुराण, हरिवंश पुराण, अनन्त व्रत पूजा, ज्येष्ठ जिनवर व्रतोद्यापन चतुर्विंशति तीर्थकर पूजा, द्वादशाम पूजा । पाण्डव पुराण - इस में पाण्डदों का चरित अंकित गया है, जिसकी श्लोक संख्या छह हजार सात सौ बतलाई गई है । कवि ने इस ग्रन्थ को वि० सम्वत १६५७, पूस महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया रविवार के दिन पूर्ण किया है श्री विक्रमार्क समयागत षोडशार्क सत्सुंबराकृति वरे शुभवत्सरे वं । वर्षे कृतं सुखकरं सुपुराणमेतत् पंचाशदुत्तर सुसप्त युते ( १६५७) वरेण्ये || पौस मासे तथा शुक्ले नक्षत्रे तृतियादिने ।११० रविवारे शुभेयोगे चरितं निर्मितं मया । १११ शान्तिनाथ पुराण - इसमें भगवान शान्तिनाथ का जीवन परिचय अंकित है जिसकी पद्य संख्या ४०२५ बतलाई गई है । प्रशस्ति में कवि ने अपनी पट्ट परम्परा के भट्टारकों का उल्लेख किया है । कवि ने इस ग्रन्थ को सं० १६५९ में मगशिर के महीने की त्रयोदशी को सौजित्र में नेमिनाथ के समीप पूरा किया है- संवत्सरं षोडशनामध्ये एकोनशत्वष्ठियुते (१६५६) वरेण्ये | श्री मार्ग शीर्ष रचित मयाहि शास्त्रं च वष विमल विशुद्धं ।।४६२ त्रयोदशी सहिवसे विशुद्ध वारे गुरौ शान्ति जिनस्य रम्यं । पुराणयेत द्विपुलं विशालं जीयाश्चिरं पुण्यकरं नराणाम् ॥४६३ ( युग्म ) हरिवंश पुराण - इस ग्रन्थ की प्रति तेरहपंथी बड़ा मन्दिर जयपुर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध है, जिस का रचना काल सं० १६७५ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी है। (जैन ग्रन्थ सूची भा० २ ० २१८ ) शेष पूजा ग्रन्थ हैं, उनकी प्रतियाँ सामने न होने से उनका परिचय देना शक्य नहीं है। भट्टारक चन्द्रकोति काष्ठासंघ नन्दितरगच्छ विद्यागण के भट्टारक श्रीभूषण के पट्टधर शिष्य थे । अच्छे विद्वान थे। इन्होंने अपने थों के अन्त में जो प्रशस्ति दी है उसमें नन्दितट गच्छ के भट्टारकों की प्रशंसा की गई है। चन्द्रकीति कहां के पट्टधर थे, उसका स्पष्ट निर्देश नहीं मिला। उस समय सोजित्रा के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी काष्ठासंघ के पट्ट रहे १. सं० १६०४ वर्षे वैशाख वदी ११ शुक्र काष्ठा संघे नन्दी तटगच्छे विद्यागणे भट्टारक रामसेनान्वये भ० श्रो विशाल कीर्ति तत्पट्टे भट्टारक श्री विश्वसेन तत्पटे भ० विद्याभूषन प्रतिष्ठित गड जातीय गृहीत दीक्षा बाई अनन्त नित्यं प्रणमति ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566