Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 565
________________ १५वी, १६वीं, १७वीं और १८वीं शताब्दी के आचार्य, भट्टारक और कवि प्रकाशित सिद्धान्त सारादि संग्रह में मुद्रित हो चुका है। और पहला ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। कवि ने इसकी अन्तिम प्रशस्ति में अपना परिचय भी अंकित कर दिया है । कवि ने इस चन्द्रिका टीका को वि० सं० १७२६ की दीपमालिका के दिन गुरुवार को चित्रा नक्षत्र और बश्चिक लग्न में बनाकर समाप्त किया है। कवि की अन्य रचनाएं अन्वेषणीय हैं । कवि का समय १८ वीं शताब्दी है। अरुणर्माण यह मदारक श्रुतकीति के प्रशिष्य और बुध राघव के शिष्य थे। बुध राघव ने ग्वालियर में जैन मन्दिर बनवाया था। इनके ज्येष्ठ शिष्य बुध रत्नपाल थे, दूसरे बनमाली तथा तीसरे कान्हरसिंह थे। प्रस्तुत अरुणमणि (लालमणि) इन्हीं कान्हरसिंह के पुत्र थे। प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु परम्परा इस प्रकार बतलाई है-काष्ठा संघ में स्थित माथुरगच्छ और पुष्करगण में लोहाचाय के अन्वय में होने वाले भ० घमंसेन, भावसेन, सहस्रकीति, गुणकीति, यशकीति, जिनचन्द्र, श्रुतिकीर्ति के शिष्य धरत्नपाल, वनमाली और कान्हरसिंह। इनमें कान्हरसिंह के पुत्र अरुणमणि ने 'अजित पुराण' की रचना मुगल बादशाह अवरगशाह (औरंगजेब) के राज्य काल में सं० १७१६ में जहानाबाद नगर (वर्तमान न्यू दिल्ली) के पार्श्वनाथ जिनालय में बनाकर समाप्त की है। इनके शिष्य पं० बुलाकीदास थे। इन्होंने दिल्ली में बुलाकीदास को पढ़ाया था। कवि बलाकीदास ने प्रश्नोत्तर श्रावकाचार प्रशस्ति में इनका निम्न पद्यों में उल्लेख किया है "अरुन-रतन पंडित महा, शास्त्र कला परवीन । अलचन्द तिनपं पदयो, ग्यान अंश तहाँ लीन ।।१६ बहुत हेत करि प्ररुन नै, दयो शान को भेव । तव सुबुद्धि घट में जगी, करि बुद्धि तम छेद ॥"२० प्रस्तुत प्रजितपुराण में दूसरे तीर्थकर अजितनाथ का जीवन परिचय अंकित किया गया है। रचना सरस और सरल है। भट्टारक देवेन्द्र कोति यह मूलसंघ के भट्टारक जगतकीति के पट्टधर थे। जगतकीति भ० सुरेन्द्रकीति के पट्ट पर सं० १७३३ ॥ सवत्सरे निधिदगश्व शशाङ्कयुक्त दीपोत्सवात्य दिवसे सगुरौ सचित्र। . सानेऽलि नाम्नि च समाप गिरः प्रसादात् सदादिराज रचिता कवि चन्द्रिकेयम् ॥ श्री राजसिंह नपतिर्जयसिंह एवं थी तक्षकास्यनगरी अहिल्लतुल्या। श्री वादिराज विबुधोऽपर वाग्भटोऽयं श्री सूत्र वृत्तिरिह नन्दतु चाकं चन्द्रम् ॥२ श्रीमद्भीमनपालजस्य बलिनः श्री राजसिंहस्य मे, सेवायामवकाशमाप्य विहिता टीका शिशूना हिता। होनाधिक्य वनो यदव लिखितं तद्वै बुधः क्षम्यताम् । गाहस्थ्यावनिनायसेवनधियः कः स्वस्थता माप्नुयात् ।। ३ २. देखो, जन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह भाग १, पृ० १७ ॥ ३. रस-वृष-यति-वंदे रुपात संवत्सरे (१७१६) ऽस्मिन, नियमित सितवारे वैजयन्ती दशम्या, अजित जिनचरित्र बोध पात्र बुधानां, रचितममलवाग्मि-रक्त रत्नेन तेन॥४. मुद्गले भूभुजा श्रेष्ठे राज्येऽवरंग साहिके।' जहानाबाद-नगरे पार्श्वनाथ जिनालये Int

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