Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 523
________________ ५११ १५वीं १६, १७वीं और १८वीं शताब्दी के आचार्य भट्टारक और कवि प्रदान की थी। इनके सिवाय, ब्रह्मनेमिदत्त ने अपने आराधना कथा कोश, श्रीपाल चरित, सुदर्शन चरित, रात्रिभोजन त्याग कथा र नेमिनाथ पुराण आदि ग्रन्थों में श्रुतसागर का श्रादरपूर्वक स्मरण किया हैं। इन ग्रन्थों में आराधना कथा कोश सं० १५७५ के लगभग की रचना है, और श्रीपाल चरित सं० १५८५ में रचा गया है। शेष रचनाए इसी समय के मध्य की या आसपास के समय की जान पड़ती है । रचनाएँ ब्रह्म श्रुतसागर की निम्न रचनाएं उपलब्ध हैं - १. यशस्तिलक चन्द्रिका २ तत्त्वार्थ वृत्ति ३. तत्त्व त्रय प्रकाशिका, ४. जिन सहस्र नाम टीका ५ महाभिषेक टीका ६. षट् पाहुडरीका ७ सिद्धभक्ति टीका ८ सिद्ध चक्राष्टक टीका, ६ व्रत कथा कोश- ज्येष्ठ जिनवर कथा, रविव्रतकथा, सप्त परम स्थान कथा, मुकुट सप्तमी कथा, अक्षयनिधि कथा, षोडश कारण कथा, मेघमालाव्रत कथा, चन्दन षष्ठी कथा, लब्धिविधान कथा, पुरन्दर विधान कथा दशलाक्षणी व्रत कथा, पुष्पांजलि व्रत कथा, आकाश पंचमी कथा, मुक्तावलि व्रत कथा, निर्दुख सप्तमो कथा, सुगंधदशमी कथा, श्रावण द्वादशी कथा, रत्नत्रय व्रत कथा, अनन्त व्रत कथा, अशोक रोहिणी कथा, तपो लक्षण पंक्ति कथा मेरु पंक्ति कथा, विमान पंक्ति कथा और पल्ल विधान कथा । इन सब कथानों के संग्रह का नाम व्रत कथा कोष है । यद्यपि इन कथाओं में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के अनुरोध एवं उपदेशादि द्वारा रचे जाने का स्पष्ट उल्लेख निहित है । १० श्रीपाल चरित ११- यशोधर चरित १२. औदार्य चिन्तामणि (प्राकृत स्वोपज्ञवृत्ति युक्त व्याकरण ) १३. श्रुत स्कन्ध पूजा १४. श्रीपार्श्वनाथ स्तोत्रम् १५. शान्तिनाथ स्तुतिः । पार्श्वनाथ स्तोत्र १५ पद्यात्मक है, जो अनेकान्त वर्ष १२ किरण ८ ० २३६ पर प्रकाशित हुआ है। यह जीरा पल्लिपुर में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ जिन का स्तवन है । इस स्तवन में पार्श्वनाथ जिन का पूरा जीवन अंकित है। इसमें पार्श्वनाथ के पिता का नाम विश्वसेन बतलाया है, जो काशी (वाराणसी) के राजा थे । वमिष्टो विश्वसेनः शतमख रुचितः काशि वाराणसीशः । प्राप्तेभ्यो मे गे मरकत मणि पार्श्वनाथो जिनेन्द्रः । तस्याभूस्त्वं तनूजः शत शरत्र चितस्थापुरानं वहेतुjaatni भाव्यमानो भयचकित धियां धर्मधुर्यो परिश्यां ॥"e शान्तिनाथ स्तुतिः में नौ पद्य हैं। यह स्तवन भी अनेकान्त वर्ष १२ किरण पू० २५१ में मुद्रित हुआ है। ब्रह्म श्रुतसागर की कई रचनाएँ अभी अप्रकाशित हैं जिनके प्रकाशन की व्यवस्था होनी चाहिए । ब्रह्म नेमिदस । यह मूलसंघ सरस्वती गच्छ बलात्कार गण के विद्वान मल्लिभूषण के शिष्य थे। इनके दीक्षा गुरु भ० विद्यानन्दि थे, जो सूरत गद्दी के संस्थापक भ० देवेन्द्रकीति के शिष्य थे। इन्हीं विद्यानन्दि के पट्ट पर प्रतिष्ठित होने वाले भूषण गुरु थे, जो सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्ररूप रत्नत्रय से सुशोभित थे और विद्यानिन्द रूप पट्ट को प्रफुल्लित करने वाले भास्कर थे । मल्लिभूषण के दूसरे शिष्य भ० सिंहनन्दिगुरु थे, जो मालवा की गद्दी के भट्टारक थे। इनकी प्रार्थना ( मालवादेश भट्टारक श्री सिंहनन्दि प्रार्थना) से श्रुतसागर ने यशस्तिलक चम्पू की 'चन्द्रिका' नाम की टीका लिखी थी और ब्रह्मनेभिदत्त ने नेमिनाथ पुराण भी मल्लिभूषण के उपदेश से बनाया था और वह उन्हीं के नामांकित किया गया था । | ब्रह्म नेमिदत्त के साथ मूर्ति लेख में ब्रह्म महेन्द्रदत्त नाम का सौर उल्लेख मिलता है। जो नेमिदत्त के सहपाठी हो सकते हैं । ब्रह्मनेमिदत्त संस्कृत हिन्दी और गुजराती भाषा के विद्वान थे। पापकी संस्कृत भाषा को १० १. जीरा पल्तिपुर प्रकृष्ट महियन् मौकुन्द सेवानिये ! - पार्श्वनाथ स्तवन

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