Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Gajendra Publication Delhi

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Page 441
________________ । तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के आचार्य, विद्वान और कवि ४२६ ११२८ के १२८ में शिलालेख में नयकीर्ति सिद्धान्तदेव के शिष्यों में प्रभाचन्द्र का नामोल्लेख है । इससे वे नयकीर्ति के शिष्य थे। नयकीर्ति का स्वर्गवास शक संवत् १०६६ (सन् १९७७ - वि० सं० १२२४ ) में हुआ था। ऐसा शिला लेख नं० ४२ से ज्ञात होता है। अतः यह प्रभाचन्द्र विक्रम की १३वीं शताब्दी के विद्वान है । काण्डय्य इनके पितामह का नाम भी प्रण्डय्य था। जिनके तीन पुत्र थे । शान्त, गुम्मट और वैजण ज्येष्ठ पुत्र शान्त की पत्नी बल्लब्बे के गर्भ से प्रस्तुत ऋण्डय्य का जन्म हुआ था। इनका निवास स्थान कन्नड था। इसका रचा हुप्रा 'कब्बिगर' नाम का एक काव्य ग्रन्थ है, जो शुद्ध कन्नड़ी भाषा का ग्रन्थ है। इसमें संस्कृत का मिश्रण नहीं है। इसने जन्न कवि की स्तुति की है । श्रतएव इसका समय १२४० ई० के लगभग माना जा सकता है। यह ईसा की १३वीं शताब्दी का कवि था । शिशु मायण यह होयसल देश के अन्तर्गत नयनापुर नाम का एक ग्राम है। उसके समीप कावेरी नदी की नहर बहती है और वहाँ देवराज के इष्टानुसार राजराज ने भगवान नेमिनाथ का विशाल मन्दिर बनवाया है। इस ही ग्राम में afa के पितामह मायण सेट्टी रहते थे । वे बड़े भारी धनिक और व्यापारी थे। उनकी स्त्री तामरसि के गर्भ से बोमसेट्टि नाम का पुत्र हुआ। बोम्मसेट्टि की स्त्री नेमानिका के गर्भ से कवि शिशुमायण का जन्म हुआ था । कापूर गण के भानुमुनि इसके गुरु थे। कवि ने दो ग्रंथों की रचना की है। त्रिपुर दहनसांगत्य, और अंजनाचरित । इनमें अनार की रचना कवि ने बेलुकरे पुर के राजा गुम्मट देव की रुचि और प्रेरणा से की थी। इनका समय ईसा की १३वीं शताब्दी है । पार्श्व पंडित यह पंडित सौंदलिके रराज वंशी कार्तिवीर्य (१२०२-१२२०) का सभा कवि था । इसने अपने एक पद्य में कहा है कि कार्तवीर्य का पुत्र लक्ष्मणोवोर्य था । यह लक्ष्मणोवीर्य १२२९ में राज्य करता था । बाम्बे की रायल एशियाटिक सोसाइटों के जर्नल में जो एक शिलालेख प्रकाशित हुआ है, उसे पार्श्व कवि ने शक सम्वत् १९२७ सन् १२०५ में लिखा था, उसमें लिखा है कि- 'कोण्डी मण्डल के वेणुग्राम में रट्टवंशीय राजाकार्तवीर्य, जो मल्लिकार्जुन के सहोदर भाई थे राज्य करते थे और उन्होंने अपने मण्डल के आचार्य शुभचन्द्र भट्टारक के लिये उक्त ग्राम कर रहित कर दिया था। यह शिलालेख पार्श्वकवि का ही लिखा हुआ है। इसमें इसलिए भी सन्देह नहीं रहता कि कवि, ने अपने 'पापुराण' में जिस कविकुल तिलक विरुद को अपने नाम के साथ जोड़ा है, वही उक्त शिलालेख के भी अन्तिम पद्य में लिखा है । इससे इस का समय १२०५ के लगभग निश्चित होता है। सुकविजन मनोहर्षं शस्यप्रवर्ष, बुधजन मन: पद्मिनी पद्ममित्र, कविकुल तिलक आदि इसके प्रशंसा सूचक उपनाम थे। इसकी एकमात्र कृति पा पुराण ग्रन्थ उपलब्ध है, जो गद्य-पद्य मय चम्पू ग्रन्थ है। इसमें सोलह श्राश्वास हैं । ग्रंथ के प्रारम्भ में जिनकी स्तुति करके कवि ने सिद्धान्तसेन से लेकर वौरनन्दी पर्यन्त गुरुयों की, और पंप पोन्न, रम्न, धनंजय, भूपालदेव, अच्चण्ण अग्गल, नागचन्द्र, बोप्पण आदि पूर्व कवियों की स्तुति की है । कवि ने स्वयं अपने इस ग्रन्थ की चार पद्यों में प्रशंसा की हैं। अकलक भट्ट ने अपने शब्दानुशासन ( १६०४ ) में इस ग्रंथ के बहुत से पद्य उदाहरण स्वरूप उद्धृत किये हैं। कवि का समय सन् १२०५ (वि० सं० १२६२) है | कवि जन्न जन्न - का जन्म कम्मे नामक वंश में हुआ था। इनके पिता का नाम शंकर और माता का नाम गंगादेवी था शंकर हयशालवंशीय राजा नरसिंह के यहाँ कटकोपाध्याय (युद्ध विद्या का शिक्षक या सेनापति ) था । गंगादेवी

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