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द्रव्य परम्पराओं के सहयोगी राजवंश ]
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उन्हें समृद्धि शाली एवं सुन्दर बनाया। उसकी धर्मपत्नी नागल देवी की कुक्षि से उत्पन्न उसके पुत्र बोप्प (बप्प) सेनापति ने दोर समुद्र के मध्य भाग में एक भव्य जिन मन्दिर का निर्माण करवाया। बोप्प चम्पति ने अपने पिता महादण्डनायक गंगराज के स्वर्गस्थ हो जाने पर उनकी स्मृति में उस मन्दिर की प्रतिष्ठा नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवर्ती से करवायी । हल सोगे बलि के द्रोह घरट्ट जिनालय की प्रतिष्ठा के पश्चात् जिस समय पुरोहित लोग भगवान् को लगाये गये भोग का प्रसाद लेकर महाराजा विष्णुवर्द्धन के पास बंकापुर पहुंचे, उस समय विष्णुवर्द्धन ने होयसल राज्य पर एक शक्तिशाली अति विशाल वाहिनी के साथ आक्रमण करने के लिये चढ़कर पाये हए दुर्दान्त शत्रु मसरण को युद्ध में पूर्णतः पराजित कर उसके विशाल राज्य को अपने अधिकार में कर लिया। उसी समय विष्णूवर्द्धन की महारानी लक्ष्मी देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया। हर्षातिरेक में विष्णवर्द्धन के मुख से ये शब्द फूट पड़े:--"इन्हीं भगवान् पार्श्वनाथ के जिनालय की प्रतिष्ठा के परिणामस्वरूप मुझे युद्ध में विजय एवं पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है अतः इन देवाधि देव के जिनालय का नाम विजय पार्श्व और सद्य-प्रसूत राजकुमार का नाम विजयनरसिंह देव रखता हूं।"
. राजा ने उस मन्दिर के लिये प्रासन्दि नाड के जावगल ग्राम के दान के साथ अनेक प्रकार के अन्य दान भी दिये।"' स्वयं विष्णुवर्द्धन ने ११३३ ई० में इस विजय-पार्श्वमन्दिर में जाकर वन्दन-नमन एवं अर्चन किया।'
. इसी प्रकार सम्भवतः रामानुजाचार्य की मैसूर राज्य में विद्यमानता के समय अथवा उनके मैसूर से प्रस्थान कर देने के कुछ ही दिनों पश्चात् शक सं. १०४७ (ई. सन् ११२५) में विष्णूवर्द्धन द्वारा वसदियों के जीर्णोद्धार एवं जैन ऋषियों के आहार दान हेतु जैनाचार्य श्रीपाल विद्य देव को शल्य चमक ग्राम के दान में दिये जाने का उल्लेख है।
इन सब के अतिरिक्त जिन शासन की श्रीवृद्धि के लिए विष्णुवर्द्धन द्वारा जिनमन्दिरों, वसदियों आदि की व्यवस्था एवं जैन मुनियों के आहार आदि के लिये दान दिये जाने के अनेक उल्लेख उपलब्ध होते हैं।
यहां उस सन्दर्भ में यह भी महत्त्वपूर्ण विचारणीय बात है कि बहु प्रचलित निराधार किंवदन्तियों के अनुसार यदि होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन जैन धर्म का ' जन शिलालेख संग्रह, भाग २, लेख सं० ३०१, पृ. ४७१-४८२ ? This temple which King Narsingha now visited was the same temple which King Vishnu had visited in A. D. 1133.
(मीडिएवल जैनिज्म, बी०ए० सेलाटोर लिखित, पेज-८४) 3 जैन शिलालेख संग्रह, भाग १, लेग्व संख्या ४६३ पृ० स० ३६५ से ४०१
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