Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

Previous | Next

Page 877
________________ शब्दानुक्रमणिका ] [ ८१६ परप-२६७ पेराम्पिडुगु मत्तराइयन-४६८ परमहंस-५१५, ५१६, ५१७, ५१८, ५१६, पेरमाजगदेक मल्ल-३०८ ५२०, ५२१, ५३३, ५३६ पेरियार-७८९ परमानन्द शास्त्री-५३७ पेरूर कुरत्ति-१८४ परमेष्ठी-६६७ पेर्माडिदेव-३२० परमेश्वर वर्मन-५४३, ५४४, ६२५, ६२६ । पोचिकव्वे-३२० परांतक-७६३ पोयसल-१५, १६४ परिज्ञात कर्मामुनि-३१ पृथ्वी कोंगाल्व-२४२ पल्ल पंडित-२४३ पृथ्वी गंग-२६४ पल्लवराज-२६६, २८०, २८२, २८३, पृथ्वीपति-७६३ २६१ पृथ्वीपाल-५७६ पाठक डा. के. वी.-१२९ पृथ्वी वल्लभ-२८६, ५३६, ६२८ पाडिवत-१०७ प्रताप बल्लाल-३०८ पाणिनी-६७० प्रतापशील-५०६ पारसीक-६२१ प्रद्युम्न-७०१, ७१२ पारिसण्ण-३२४ प्रद्योतन सूरी-६७६ पारुषदेव-२४५ प्रख्यात कीर्ति-१३८ पाल्यकीति-१८०, २११, २१२, २१३, प्रभव-२७३, ६१२ ६७०, ६७१, ६७२, ६७३ प्रभाकर वर्द्धन-५०६, ५०७ पार्श्वनाथ-१, ३८, १७०, १७५, २२२, प्रभाचन्द्र-७, ११०, १२८, १२६, १३७, २२४, २५६, २७०, २८४, ३१३, १३८, १३६, १५१, १६६, २४२, ५८१, ६४४, ६४८, ७८८ २४३, २४७, २४८, २६३, २६२, पाशुपत परिव्राजक-४६० २६७, ३०८, ३१६, ३१७, ६०६, पिच्च कुरत्ति-१९६ ६७८, ८०५ पिल्ले नायनार-४८६ प्रभूत वर्ष--१६२, ६२०, ६२१ पुरिणस-३०६ प्रभूत वर्ष गोविन्द-२६७, ६१८, ६१६ पुरूरवा-२६६ प्रभूत वर्षीबल्लभ-२६० पुरुषोत्तम-५३२ प्रसन्नचन्द्राचार्य-१०१ पुलके सिन-२८५, २८६, ५०६, ५१०, ५४१, प्रिय बन्धु-२५६ ५४२, ६२३, ६२५, ६६०, ६६१ ।। प्रोल-३२५, ३२६ पुष्पदन्त-२६४, २६५, २६६, २६७ पुष्पसेन-४६८ फतेहचन्द बेलानो-४३३ पुष्यमित्र-३, ४, ६६, २३७, ३८४, ५०३, फल्गुमित्र-३८४ ५०४, ५२६, ५४१, ५६८, ७०८, फल्गुमित्र-७०६ ७०४ फ्लीट-२८८, २८६ मित्र शुग-२६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934