Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 927
________________ सम्मतियां ] [ =96 तथ्यों के प्रतिपादन की शैली सुवोध और रोचक है । इतिहास की नीरसता और शुकता की अपेक्षा साहित्य और सहज लोकभाषा की समन्वित छटा दिखायी देती है। इस ग्रन्थ की पठनीयता में वृद्धि हुई है। जैन विचार, आचार और सम्बन्धित महापुरुषों को लेकर उक्त ग्रन्थ मौलिक है और अपना पृथक स्थान रखता है । हमें विश्वास है इसका इतिहास और धर्म के मर्मज्ञों में समादर होगा और जैनधर्म के विभिन्न सम्प्रदाय इसकी समग्रता से प्रभावित होकर अधिक निकट आयेंगे । छपाई निर्दोष, आकर्षक और कलात्मक है, मूल्य सर्वथा उचित है । जैन संदेश २४ फरवरी, ७२ समीक्षक : पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री कहीं भी शैली में साम्प्रदायिकता का अभिनिवेश नहीं आने पाया है । पुस्तक पठनीय है, संग्राह्य है । लेखन की तरह प्रकाशन भी आकर्षक है । इस समय इसी तरह के सुन्दर प्रकाशनों की आवश्यकता है । हम इतिहास समिति को उसके इस सुन्दर प्रकाशन पर बधाई देते हैं । डॉ० भागचन्द्र जैन एम० ए०, पी० एच० डी० प्रध्यक्ष, पालि- प्राकृत विभाग, नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर ....... इसमें यत्र-तत्र जैनेतर साहित्य का भी भरपूर उपयोग किया गया है । शास्त्र के विपरीत न जाने का विशेष ध्यान विद्वान लेखक ने रखा है । फिर भी दिगम्बर जैन परम्परा के और बौद्ध तथा वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में समाहित ऐतिहासिक तथ्यों को यथास्थान उद्घाटित करने का महाराज सा० का प्रयत्न सराहनीय है । भाषा, भाव, शैली और विषय की दृष्टि से लेखक निःसन्देह अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल हुआ है । ऐसे महनीय ग्रन्थ के लिए लेखक और सम्पादक मण्डल धन्यवाद के पात्र हैं । जैन समाज के उच्चकोटि के विद्वान श्री दलसुख भाई मालवरिया "आचार्यश्री ! सादर बहुमान पूर्वक वन्दरगा । 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' भाग २ के रोचक प्रकरण एवं आपकी प्रस्तावना पढ़ी। आपने इस ग्रंथ में जैन इतिहास की गुत्थियों को सुलझाने में जो परिश्रम किया है, जैसी तटस्थता दिखाई है, वह दुर्लभ है | बहुत काल तक आपका यह इतिहास ग्रंथ प्रामाणिक इतिहास के रूप में कायम रहेगा । नये तथ्यों की सम्भावना अब कम ही है । जो तथ्य आपने एकत्र किये हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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