Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

Previous | Next

Page 888
________________ ८३० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ सूरेश्वर-५६३ सूरसेनजी-३८३ सेणवीर-३४८ सेन-६५३ सेन्द्रक-२७६ सेलोटोर बी० ए०-१५, ४७५ सोम-२६६ सोम गन्ध-३०८ सोमदेवसूरी-२०, २१, २२, २३, १६५, २१७, २१८, २६४, २६७ सोम प्रभाचार्य-५२७, ५२८, ५२६, ५३०, सोमेश्वर-२७०, ३०७, ३०८,७६६ सोम सुन्दरसूरि-१०४ सोपीदेव (प्रथम)-२८४ सोरिदेव-२४४ सोला-८०० श्री वसुनन्दी-१३७ श्री सुतनन्दी-१६५ श्री सिद्धसेन दिवाकर-३४५ श्री सरकनिंघम-३८२ श्री हर्ष-२६०, २६५, २६६ श्रुतकीर्ति-१३७, २४८ श्रुतकीति विद्य-१६६, १७०, १७५ श्रुतदेवी-४०८ श्रुतदेवीस्वरूपा गणा-७३५ श्रुतसागर सूरी-१४७, २१५, २२०, २२६ हंस-५१५, ५१६, ५१७, ५१८, ५३३, श्री कृष्ण-२२८, २८७, ४२३, ६४६ श्री कलश-२०२, २०३ श्री चन्द्र-१३६ श्रीजा-२६६ श्रेणिक-२८७, ४११ श्रीदत्त-२५६ : श्रीदेवी-५७७, ५७८, ५७६ श्री धरदेव-२६३ श्री धराचार्य-१६५ श्री नन्दी-१३७ श्रीपाल-६६८ श्रीपाल विद्यदेव-३१३, ३१७, ३२१ श्रीपुरुष-२६६, ६२५, ६२६, ६२७ श्रीभूषण-१३७, १३६ श्री मन्दिर-२४३ श्री मल-५२७ श्री विजय-२७०, २८२ श्री वत्स-४७७, ६४४, ६४७ श्री वल्लभ-६४४, ६४८, ६४६, ७६३ हृदि नन्दि-१३७ हन्तियूर-३१८ हरिगुप्त सूरी-३८६, ३८८, ३८६, ३६०, ३६२, ३६३, ३६४, ३६७, ४४६, ४६४ हरि नन्दी-१३७ हरिप्त गुप्त-३८६ हरिभद्र सूरी-५८, ७६, १०८, १२६, १३०, १३१, १३२, २१०, २११, ३२६, ३३०, ३३१, ३४१, ३४८, ३४६, ३६३, ३६७, ३८६, ३८८, ३६२, ३६३, ३६४, ३६५, ३६६, ३६७, ४१०, ४२१, ४२२, ४२३, ४४६, ४५१, ४६४, ५१३, ५१४, ५१५, ५१६, ५१६, ५२१, ५२२, ५२३, ५२४, ५२५, ५२६, ५३३, ५३६, ६४१, ६४३, ६४४, ६४६, ७२८, ७२६, ७३०, ७३२, ७३३, ७३४ हरिमित्र-३, ५, ३८४ हरियदेवी-७०१ हरियाणन्द सूरी-५३० हरियन्वरसी-३१७, ३१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934