Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 857
________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ७६६ "सं० ६६३ वर्षे प्राषाढ़सुदि १५ गुरौ, अश्विनी नक्षत्रे सिंहलग्ने रात्रिप्रहरद्वयसमये जन्मत एकविंशतितमे वर्ष त्रीमूलराजस्याभिषेकः समजनि।"' "मलराज ने अपने मामा सामन्तसिंह को मार कर अणहिलपुरपत्तन के राज्य पर अधिकार किया।" इस प्रकार का उल्लेख केवल प्राचार्य मेरुतुङ्ग ने अपने प्रबन्ध चितामरिण नामक ग्रन्थ में किया है। उदयप्रभ सूरि ने अपने 'सुकृतकीतिकल्लोलिनी' नामक ग्रन्थ में और अरिसिंह ने अपने 'सुकृतसंकीर्तन' नामक ग्रंथ में यह तो लिखा है कि मूलराज सामन्तसिंह का भागिनेय था किन्तु मूलराज अनहिलपुरपत्तन राज्य का स्वामी किस प्रकार बना, इस विषय में उन्होंने किसी प्रकार का उल्लेख नहीं किया है। यशपाल ने अपने 'मोहराजपराजय' नामक नाटक में अनहिलपुरपत्तन के चापोत्कट राजवंश के उत्तरवर्ती राजानों को सुरापान के लिये कुख्यात बताया है। इतिहास के पाश्चात्य विद्वान् बलर ने एतद्विषयक 'प्रबन्धचितामरिण' में मेरुतुंगसूरि द्वारा प्रस्तुत किये गये विवरण को अविश्वसनीय बताते हुए लिखा है"सामंतसिंह का राज्यकाल केवल ७ वर्ष का रहा। उस दशा में सामंतसिंह द्वारा अपनी बहिन का राजी के साथ विवाह करना और उससे उत्पन्न हुए ६ वर्ष के बालक द्वारा सामंतसिंह का वध करवाकर राजसिंहासन पर बैठना, यह किसी प्रकार बुद्धिगम्य नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में मूलराज ने विश्वासघात से नहीं अपितु अपने पौरुष से चालुक्यराज पर अधिकार किया।२, __ मूलराज द्वारा सामंतसिंह के राज्य का संवर्द्धन किये जाने और अन्ततोगत्वा सामंतसिंह को मार कर पाटण के राजसिंहासन पर अधिकार कर लिये जाने विषयक मेरुतुंग के उल्लेख का सामञ्जस्य बिठाने के लिये इस अनुमान का प्राश्रय लिया जा सकता है कि राजी के साथ चालुक्य राजकुमारी के विवाह की घटना संभवतः सामंतसिंह के यौवराज्यकाल की हो । इतिहास विशेषज्ञ बूलर के उपर्युल्लिखित आनुमानिक अभिमत की पुष्टि निम्नलिखित पुरातात्विक प्रमाणों से होती है :(१) बड़नगर प्रशस्ति में उल्लेख है कि मूल राज ने करों में भारी छूट देकर कर-भार को बहुत हल्का बना अपनी प्रजा का प्रान्तरिक स्नेह प्राप्त किया। उसने चापोत्कट वंश के राजकुमारों का सुखसम्पत्ति और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन बनाया, जिन्हें कि उसने पूर्व में बन्दी बना लिया था। १ प्रबन्ध चितामणि, पृ० २४ २ चालुक्याज प्रॉफ गुजरात, भारतीय विद्याभवन, बम्बई १९५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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