Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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এ9াস
सत्साहित्य मानव जाति की अमरनिधि है। मनुष्य की वह बन्न:चक्षु है, जिसके द्वारा अतीत और बनागत का दर्शन किया जा समता है। जीवन के गूढतम रहस्यो को जाना जा मयता है । जोपन मी निगूट पहेनिया सुलझाई जा सकती हैं।
जैन-धर्म और जैन परम्परा गाहित्य की दृष्टि से नदा मन नही है। सत्साहित्य वहा जीवन का अभिन्न अग बन कर रहा है । मलाहिता को सजना और उसका स्वाध्याय दोनो ही वहा 'तप' माना गया है, बाराम साधना का एक अंग माना गया है।
जिम समाज गा माहित्य प्राणवान होता है, याद और जीवन मी मुन दृष्टि से नाम होता है यह समान लदा हो अपनी अनि एब मलि. प्रगति में बता रहता है।
सुछ थपं पूर्य, जीवन में जामिर प्रेरणा जगान गारे मरगा प्रकाशन हेतु 'श्री मरधर गो माहिल प्रागन ममिति' को माना पी । म सस्पा मारब - और जीवन निर्मा पोनन-रन पंनिए गुलम नाना | RITESTANEERIE !
हम नम्मा प्रेरणा - श्री far महाग रस एर नाना -me