Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ .. . .. अभिनन्दन RER उगन. सुमन सुवासरस, रंजित रसिक ललाम । 'भावक भव्य समाप जहा! ::: "मिश्रीमल गुन-धाम K , वाया से मन से तथा दान से, पाले दया को मागे कष्ट अनेक किन्तु मुख से, मिया न बोल कदा जैसे नीरज नीर बीच रहता - मिलेंपता को पर। वेले ही विनलेप समिभिमनि" ये, संसार में संबर जो है संयमनिष्ठ इट प्रिय भी, उत्कृष्ट योगी महान बाग्मी मान गरिष्ट राष्ट्रपति से पाई प्रतिष्ठा महा ...बोले र गिरा सदैव सम से-पैनिश कीले मही श्री भांत्रिभनीन्द्र रूप मनि के जी को पुराया बही __ मरुदेश मराल दुम्ति प्रतिवादि हस्तिमदहरम हव.. বগা! মম বga संयम पथ पविक सुदा है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 656