Book Title: Jain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Author(s): Naginashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ पदार्थ प्रोटोन-इलेक्ट्रोन है। कर्म वर्गणा की सूक्ष्मता इससे अधिक आश्चर्यजनक है। आत्मा अमूर्त और कर्म मूर्त है। इनका सम्बन्ध कैसे होता है, यह कोई जटिल समस्या नहीं रही, कारण प्रायः सभी आस्तिक दर्शनों ने संसार और जीवात्मा को अनादि माना है। पश्चिम में देहात्मवाद की समस्या थी। देकार्त ने इसका हल अन्तक्रियावाद के रूप में किया। स्पिनोजा ने उसके स्थान पर समानान्तरवाद की स्थापना की। लाइबनित्ज ने प्रतिक्रियावाद की कठिनाइयों से बचने के लिये पूर्व स्थापित सामंजस्य की धारणा को अभिव्यक्ति दी। आत्मा और शरीर एक हैं या दो ? पाश्चात्य दार्शनिकों ने इस पर काफी चिंतन किया है। नास्तिक दर्शन में दोनों की अभिन्नता स्वीकार्य है। आत्मवादी को भिन्नता मान्य है। सापेक्ष दृष्टि से इसका समाधान किया जा सकता है। जैन दर्शन ने जीव और शरीर में सम्बन्ध प्रस्थापित किया है। एकान्ततः पृथक मानने पर दोनों को व्याख्यायित करना संभव नहीं। चेतन शरीर का निर्माता है। शरीर उसका अधिष्ठान है। एक-दूसरे की क्रिया-प्रतिक्रिया का प्रभाव दोनों पर है। हमारे सारे आचार-व्यवहार की व्याख्या दोनों की सांयोगिक स्थिति पर निर्भर है। देकार्त, स्पिनोजा और लाइबनित्ज आदि पाश्चात्य दार्शनिकों ने एक प्रश्न और उठाया कि शरीर और मन का सम्बन्ध क्या है ? इनका एक-दूसरे पर क्या असर होता है? मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी यह बहुचर्चित विषय है। मनोविज्ञान के आधार पर जीवन की व्याख्या में निमित्त है वातावरण, पर्यावरण या परिस्थिति। दूसरा आधार है वंशानुक्रम। व्यक्ति के आनुवांशिक गुणों का निश्चय क्रोमोसोम (Chromosomes) के द्वारा होता है। क्रोमोसोम अनेक जीनों का समुच्चय है। मानसिक और शारीरिक विकास की क्षमताएं इनमें होती हैं और जीन ही माता-पिता के आनुवांशिक गुणों के संवाहक होते हैं। व्यक्ति में कोई ऐसी विलक्षणता नहीं जिसकी क्षमता उसके जीन में निहित न हो। मनुष्य की शक्ति, चेतना, पुरुषार्थ, कर्तृत्व कितना है, जीन इनकी अभिसूचना है। वैयक्तिक भिन्नता का चित्रण मनोविज्ञान में विशद रूप में मिलता है। मनोविज्ञान के प्रत्येक सिद्धांत के साथ भिन्नता का प्रश्न जुड़ा है। यदि तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो आनुवांशिकता, जीन और रासायनिक परिवर्तन से कर्म सिद्धांत भिन्न नहीं है। अन्तर इतना ही है-जीन सूक्ष्म शरीर - तेरह

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