Book Title: Jain Darshan Praveshak
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ जैनदर्शनप्रवेशकः नयानामेकनिष्ठानां प्रवृत्तेः श्रुतवम॑नि । सम्पूर्णार्थविनिश्चायि स्याद्वादश्रुतमुच्यते ॥३०॥ प्रमाता स्वान्यनिर्भासी कर्ता भोक्ता विवृत्तिमान् । स्वसंवेदनसंसिद्धो जीवः क्षित्याद्यनात्मकः ॥३१॥ प्रमाणादिव्यवस्थेयमनादिनिधनात्मिका । सर्वसंव्यवहर्तृणां प्रसिद्धापि प्रकीर्तिता ॥३२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80