Book Title: Jain Darshan Praveshak
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan

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Page 54
________________ ४५ सम्मतिसूत्रम् चक्खुअचक्खुअवहिकेवलाण समयम्मि दंसणविगप्पा । परिपढिआ केवलनाणदंसणा तेण ते अन्ना ॥७४॥ दंसणमोग्गहमेत्तं घट त्ति निव्वण्णणा हवइ नाणं । जह एत्थ केवलाणं विसेसणं एत्तिअं चेव ॥७५।। दंसणपुव्वं नाणं नाणनिमित्तं तु दंसणं नत्थि । तेण सुविणिच्छिआमो दंसणनाणा ण अण्णत्तं ॥७६।। जइ उग्गहमित्तं दंसणमिति मनसि विसेसिअं नाणं । मइनाणमेव दंसणमेव सह होइ निप्फण्णं ॥७७॥ एवं सेसिदिअदंसणेसु नियमेण होइ न य जुत्तं । अह तत्थ नाणमेत्तं घिप्पइ चक्खुम्मि वि तहेव ॥७८॥ नाणं अप्पुढे अविसए अ अत्थम्मि दंसणं होइ । मोत्तूण लिंगओ जं अणागयाईअविसएसु ॥७९॥ मणपज्जवनाणं दंसणं ति तेणेव होइ न य जुत्तं । भन्नइ नाणं नोइंदिरं ति न घडादओ जम्हा ॥८०॥ मइसुअनाणनिमित्तो छउमत्थे होइ अत्थउवलंभो । एगयरम्मि वि तेसिं न दंसणं दंसणं कत्तो ॥८१॥ जं पच्चक्खग्गहणं ण इन्ति सुअनाणसंसिआ अत्था । तम्हा दंसणसद्दो न होइ सयलो वि सुअनाणे ॥८२॥ जं अप्पुट्ठा भावा ओहीनाणस्स हुंति पच्चक्खा । तम्हा ओहीनाणे दंसणसद्दो वि उवउत्तो ॥८३॥ जं अप्पुढे भावे जाणइ पासइ अ केवली निअमा । तम्हा तं नाणं दंसणं च अविसेसओ सिद्धं ॥८४॥

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