Book Title: Jain Darshan Praveshak
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan

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Page 62
________________ सम्मतिसूत्रम् तम्हा अहिगयसुत्तेण अत्थसंपायणम्मि जइअव्वं । आयरिअधीरहत्था हंदि पहाणं विलंबंति ॥ १६२॥ जह जह बहुस्सुओ सम्मओ अ सीसगणसंपरिवुडो अ । अविणिच्छओ अ समए तह तह सिद्धंतपडिणीओ ॥ १६३ ॥ चरणकरणप्पहाणा ससमयपरंसमयमुक्कवावारा । चरणकरणस्स सारं निच्छयसुद्धं न याति ॥ १६४॥ नाणं किरिआरहिअं किरिआमित्तं च दो वि एगंता । असमत्था दाएउं जम्ममरणदुक्खमाभाइ ॥ १६५॥ जेण विणा लोगस्स वि ववहारो सव्वहा न निव्वडइ । तस्स भुवणेक्कगुरुणो नमो अगंतवायस्स ॥ १६६॥ भद्दं मिच्छदंसणसमूहमइअस्स अमयसायस्स । जिणवयणस्स भगवओ संविग्गसुहाहिगम्मस्स ॥ १६७॥ ५३

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