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में कठिनाई अनुभव नहीं करता । वह चेतना पर होने वाले जड़ के प्रभाव को स्वीकार करता है । वह कहता है कि अनुभव हमें यह बताता है कि जड़ मादक पदार्थों का प्रभाव चेतना पर पड़ता ही है । अतः यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि जड़-कर्म वर्गणाओं का प्रभाव चेतन आत्मा पर पड़ता है। संसार का अर्थ जड़ और चेतन का वास्तविक सम्बन्ध है । १०. कर्म की मूर्तता
जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य कर्म पुदग्लजन्य है, अतः मूर्त (भौतिक) है। कारण से जिस प्रकार कार्य का अनुमान होता है, उसी प्रकार कार्य से भी कारण का अनुमान होता है । इस सिद्धान्त के अनुसार शरीर आदि कार्य मूर्त है तो उनका कारण कर्म भी मूर्त ही होना चाहिए। कर्म की मूर्तता सिद्ध करने के लिए कुछ तर्क इस प्रकार दिये जा सकते हैं- कर्म मूर्त है, क्योंकि उसके सम्बन्ध से सुख-दुःख आदि का ज्ञान होता है, जैसे अग्नि से । यदि कर्म अमूर्त होता, तो उसके कारण सुख-दुःखादि की वेदना सम्भव नहीं होती ।
मूर्त का अमूर्त प्रभाव
यदि कर्म मूर्त है, तो फिर वह अमूर्त आत्मा पर अपना प्रभाव कैसे डालता है? जिस प्रकार वायु और अग्नि का अमूर्त आकाश पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता, उसी प्रकार अमूर्त आत्मा पर भी मूर्त कर्म का कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए? इसका उत्तर यही है कि जैसे अमूर्त ज्ञानादि गुणों पर मूर्त मदिरादि का प्रभाव पड़ता है, वैसे ही अमूर्त जीव पर भी मूर्त कर्म का प्रभाव पड़ता है । उक्त प्रश्न का एक दूसरा तर्कसंगत एवं निर्दोष समाधान यह भी है कि कर्म के सम्बन्ध से आत्मा कथंचित् मूर्त भी है, क्योंकि संसारी आत्मा अनादिकाल से कर्म सन्तति से सम्बद्ध है, इस अपेक्षा से आत्मा सर्वथा अमूर्त नहीं है, अपितु कर्म सम्बद्ध होने के कारण स्वरूपतः अमूर्त होते हुए भी वस्तुतः कथंचित् मूर्त है । इस दृष्टि से भी आत्मा पर मूर्त कर्म का उपघात, अनुग्रह और प्रभाव पड़ता है । 37 जैन, बौद्ध और गीता में कर्म सिद्धान्त
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