Book Title: Jain Bauddh Aur Gita Me Karm Siddhant
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 124
________________ उसी का सम्बन्ध बन्धन से हो सकता है, क्योंकि वही राग-द्वेष या कषायादि भाव-कर्मों की कर्ता है। बौद्ध दृष्टिकोण से तुलना ____बौद्ध विचार में भी चेतना को ज्ञानात्मक, अनुभवात्मक तथा संकल्पात्मक पक्षों से युक्त माना गया है, जिन्हें क्रमशः सन्ना, वेदना और चेतना (संकल्प) कहा गया है। जैन परम्परा जिसे ज्ञान-चेतना कहती है उसे बौद्ध-परम्परा में सन्ना या क्रिया-चेतना कहा जाता है, जैन परम्परा की कर्मफल चेतना बौद्ध परम्परा की विपाक-चेतना या वेदना के समकक्ष है। बौद्ध-विचारणा की चेतना (संकल्प) की तुलना जैन विचारणा की कर्म-चेतना से की जा सकती है। तीनों पक्षों से समन्वित चेतना नैतिक आधार पर शोभना, अकुशल और अव्यक्त ऐसे तीन भागों में विभाजित की गयी है। पुनः शोभना या कुशल चेतना को तीन उपभागों में विभाजित किया गया है- १. शुभ संकल्प चेतना, २. शुभ विपाक चेतना और ३. शुभ क्रिया चेतना। इसी प्रकार अशुभ या अकुशल चेतना भी। १. अकुशल संकल्प चेतना, २. अकुशल विपाक चेतना, और ३. अकुशल क्रिया चेतना (ज्ञान चेतना)- ऐसे तीन उपभागों में विभाजित की गई है, लेकिन इसमें से शुभ और अशुभ विपाक चेतनाएँ तथा शुभ और अशुभ क्रिया चेतनाएँ बन्धन की कोटि में नहीं आती हैं। यद्यपि बाह्य जगत् में ये क्रियाशीलता की अवस्थाएँ हैं, लेकिन इनके पीछे कर्ता का कोई आशय नहीं होने से ये बन्धनकारक नहीं हैं। मात्र शुभ और अशुभ संकल्प-चेतना ही बन्धन दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं तथा संसार के आवागमन का कारण हैं। संदर्भ 1. तत्त्वार्थसूत्र ८/२-३ 2. कर्म प्रकृति, बन्ध प्रकरण, १ 3. तत्त्वार्थसूत्र टीका, भाग १, पृ० ३४३ उद्धृत स्टडीज इन जैन फिलासफी, पृ० २३२ 4. तत्त्वार्थसूत्र, ८/४ कर्म-बन्ध के कारण, स्वरूप एवं प्रक्रिया [117]

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