Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ (x) निघंटुओं में परिभाषा - ★ गुल्मस्तम्बौ प्रकाण्डरहितो महीजः । (राजनिघंटु श्लोक ३६ पृ. २३) शाखाओं से रहित महीज (वृक्ष) को गुल्म कहते हैं। * तालाद्याः जातयः सर्वाः, क्रमुककेतकी तथा । खर्जूरी नारिकेलाद्या स्तृणवृक्षाः प्रकीर्त्तिताः । । (राजानिघंटु श्लोक ४७ पृ. २४) ताड, खर्जूर आदि जाति के सभी वृक्ष तथा क्रमुक (सुपारी), केतकी, खजूर, नारियल आदि तृणवृक्ष कहे गए हैं । * निघंटुओं में लता और बेल में कोई भेद रेखा नहीं है। * शालिग्राम निघंटु पृ. १४५ में कंगुनी को बेल कहा गया है वहां भावप्रकाश निघंटु ने पृ. ६० में कंगुनी को लता माना है। * वनौषधि चन्द्रोदय भाग १ पृ. ६१ में संस्कृत नाम आकाशवल्ली, हिन्दी नाम अमरबेल और बंगाली नाम आलोक लता है। ★ चमेली को भावप्रकाशकार गुल्म मानते हैं। वहां धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ. ४४ में उसको लता कहा है । ★ निघंटुआदर्श उत्तरार्द्ध में यव, कंगू, गेहूं, चावल, कोद्रव, गवेधुक, नीवार, यावानल, चीनाक, मकई, ओट, नागली को तृणादि वर्ग में लिया है। ★ निघंटुओं के अपने-अपने मापदंड हैं। सूत्र की टीकाओं के अपने मापदंड हैं । * प्रज्ञापना सूत्र में वल्लीवर्ग के अन्तर्गत जो शब्द हैं, वे कुछ शब्द अन्य निघंटुओं में लता और गुल्म नाम से पहचाने गए हैं। * वनस्पतियों का वर्णन भिन्न-भिन्न ग्रंथों से दिया गया है, इसलिए नाम की एकरूपता होने पर भी विवरण की भिन्नता है । निघंटुओं का संक्षिप्त परिचय * शालिग्रामनिघंटुभूषण में पर्यायवाची नामों की विशेषता है। शब्द के पर्यायवाची नाम एक श्लोक में हैं। वे बहु कम हैं। पर, श्लोक के अर्थ में श्लोकगृहीत शब्दों के साथ कोष्ठक में अन्य निघंटुओं के शब्दों का संग्रह है। कहीं-कहीं पर एक शब्द के चालीस पर्यायवाची नाम भी मिलते हैं। वनस्पतियों के चित्र भी हैं। हिन्दी, बंगला, मराठी और गुजराती भाषाओं के शब्दों की अलग-अलग अनुक्रमणिका भी है। ★ कैयदेव निघंटु में पर्यायवाची शब्द अधिक हैं। संस्कृतेतर भाषाओं के शब्दों का उल्लेख नहीं है। संस्कृत शब्दों की अनुक्रमणिका भी है। * राज निघंटु में वनस्पति के भेद-उपभेदों का उल्लेख है और उनके अलग-अलग पर्यायवाची शब्दों का भी वर्णन है । शब्दों की अकारादि अनुक्रमणिका नहीं है। पर्यायवाची शब्द खोजने में कठिनाई होती है। वर्ग के अन्तर्गत शब्दों की सूची है। कहीं-कहीं संक्षेप में संस्कृतेतर भाषाओं में भी पहचान मिलती है। शोधकर्त्ताओं को शब्द खोजने में कठिनाई का अनुभव होता है। ★ सोढलनिघंटु में केवल संस्कृत भाषा के पर्यायवाची शब्द है । पर्यायवाची शब्दों के लिए श्लोक का विभाजन भी किया गया है। उनका हिंदी अनुवाद नहीं है। दूसरे विभाग में वनस्पतियों के गुण धर्म हैं। शब्दों की अनुक्रमणिका शुद्ध है । ★ भावप्रकाशनिघंटु आधुनिक संपादित है। इसमें पर्यायवाची शब्द कम हैं पर यथार्थ है। संस्कृतेतर भाषाओं के शब्दों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 370