Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ (१४) साधारणशरीर वर्ग में ६० शब्द । (१५) प्रकीर्णक वर्ग में ५ शब्द हैं। * भगवती सूत्र में प्रज्ञापना के ही नाम हैं पर ६ नाम अधिक हैं। 1 * भगवती सूत्र में कवोयमंस ( कपोतमांस), कुक्कुडमंस (कुक्कुटमांस) मज्जार ( मार्जार) ये ३ शब्द मांसपरक हैं * रायप्रश्नीय सूत्र और जीवाजीवाभिगम सूत्र में भी प्रज्ञापना सूत्र के ही नाम हैं, पर जीवाजीवाभिगम सूत्र में २८ नाम नए हैं । * जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में १२ नाम ऐसे हैं, जो जीवाजीवाभिगम सूत्र के सिवाय अन्यत्र नहीं हैं । ★ आवश्यक और दशवैकालिक सूत्रों में एक-एक नाम है । * उत्तराध्ययन, उपासक दशा और स्थानांग में कुछेक नाम हैं। * सूर्य प्रज्ञप्ति में २८ नक्षत्रों के भोजन दिए गए हैं उनमें ११ शब्द मांसपरक हैं। * कुल मिलाकर लगभग ४६६ शब्द हैं। * प्रज्ञापना सूत्र में ये शब्द जितने व्यवस्थित रूप में उल्लिखित हैं उतने अन्य सूत्रों में नहीं हैं। आगमों की टीकाओं में परिभाषा गुल्मा लता पर्वक वलय हरित : औषधि (धान्य) औषध्य : जलरुह कुहण (भूमिस्फोट) साधारण शरीर (ix) एकास्थिक बहुबीजक Jain Education International : हस्वस्कन्धबहुकाण्डपत्रपुष्पफलापेताः । जिसका स्कंध छोटा और कांड पत्र पुष्प तथा फल अधिक हो वह गुल्म होता है । : येषां स्कन्धप्रदेशे विवक्षितोर्ध्वशाखा व्यतिरेकेणान्यत् शाखान्तरं तथाविध परिस्थूरं न निर्गच्छति ते लता : व्यवह्रियन्ते । (प्रज्ञापना मलयवृत्ति पत्र ३० ) जिसके स्कंध प्रदेश से ऊपर एक शाखा के अतिरिक्त दूसरी शाखा न निकले वह लता होती है। : पर्वगानि पर्वोपेतानि एतेषां यदक्षि यच्च पर्व यच्च बलिमोडउ त्ति पर्व परिवेष्टनं चक्राकारम् । गांठ वाली वनस्पति : त्वग् वलयाकारेण व्यवस्थितेति । (प्रज्ञापना मलय वृत्ति) जिसकी छाल वलय के आकार की हो । : : हरे पत्तों का शाक या जो प्रायः हरे ही प्रयोग में आते हों । फलपाकान्ता ते च शाल्यादयः (प्रज्ञापनामलय वृत्ति पत्र ३६) । फल पकने से जिसका नाश होता हो । जले रुहन्तीति जलरुहाः । (प्रज्ञापनामलय वृत्ति पत्र ३१) जल स्थान में पैदा होने वाली । भूमि स्फोटाभिधानास्ते चायकायप्रभृतयः । (प्रज्ञापनमलय वृत्ति पत्र ३०२ ) जो भूमि को फोड़कर निकलते हों, वे आय, काय आदि । : समानं तुल्यं प्राणापानाद्युपभोगं यथा भवति एवमासमन्तादेकीभावेनानन्तानां जन्तूनां धारणं संग्रहणं येन तत् साधारणं, साधारणं शरीर येषां ते साधारणशरीराः । अनन्त जीव समान रूप में एक साथ जिस शरीर में प्राण अपान आदि का उपभोग करते हैं । वह साधारण शरीर होता है। प्रज्ञापनामलय वृत्ति : गुठली वाली वनस्पति । : जिसमें बीज अनेक हों वैसी वनस्पति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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