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(viii)
* आयुर्वेद के शब्दों का मुझे क, ख भी नहीं आता था। मेरे सामने समस्या थी कहां खोजूं। * मैं जो शब्द खोजना चाहता था वह अनुक्रमणिका में न मिलने से मेरे सामने वही समस्या पुनः आ गई। * शब्दों को खोजने में बहुत समय लगा। करीबन ५ वर्ष लगे। एक-एक शब्द के लिए उपलब्ध सारे निघंटु और
कोश देखने पड़ते थे। * मैं शब्दों को खोजता गया। एक शब्द के अनेक अर्थ मिलने पर समस्या सामने आई, कौन-सा अर्थ दिया जाये। * चित्र के अभाव में निर्णय करना कठिन हो रहा था। * प्रारंभ में श्री झूमरमलजी बैंगाणी से विमर्श करता गया। * धीरे-धीरे अनुभव बढ़ने लगा, समस्या हल होती गई। * श्री नोरतनमलजी सुराणा (तारानगर) गुरूदेव की सेवा में आए हुए थे। एक दिन मेरे पास आए और पूछा-आप
क्या कर रहे हैं? मैंने उत्तर दिया-जैनागमों में वनस्पतियों के नामों की विशाल संख्या है। उनकी पहचान का
प्रयत्न कर रहा हूं। * उन्होंने कहा-“मैंने २० वर्ष तक औषधियों का कार्य किया है, मेरा भी अनुभव है। मेरे पास कुछ पुस्तकें हैं।
वे भी आपके उपयोगी हो सकती हैं।" * उनके पास धन्वन्तरि पत्र के वनौषधि विशेषांक के ६ भाग मिले। * चित्र सहित विस्तार से वर्णन इन विशेषांकों में मिल गया। * ये विशेषांक मेरे लिए निधि बन गए। मैं वनस्पतियों के शब्दों के पहचान में स्वावलंबी बन गया। ४० प्रतिशत
समस्या समाहित हो गई। * आगामों में भगवती सूत्र और सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र के मांस परक ११ शब्दों की पहचान वनस्पति के अर्थ में कर ली
गई है। आगमों में वनस्पतिवाचक शब्द* स्थानांग, भगवती, उपासकदशा, औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति,
सूर्यप्रज्ञप्ति आवश्यक, दशवैकालिक और उत्तराध्ययन-इन सूत्रों में वनस्पतियों के नाम यत्र-तत्र आए हैं। प्रज्ञापना सूत्र में वनस्पतियों के लगभग ४२१ नाम हैं। इनको १५ वर्गों में विभक्त किया गया है। (१) एकास्थिक वर्ग में ३२ शब्द । (२) बहुबीजक वर्ग में ३३ शब्द । (३) गुच्छ वर्ग में ५३ शब्द । (४) गुल्म वर्ग में २५ शब्द । (५) लता वर्ग में १० शब्द । (६) वल्ली वर्ग में ४८ शब्द। (७) पर्वक वर्ग में २१ शब्द । (E) तृण वर्ग में २३ शब्द । (६) वलयवर्ग में १७ शब्द। (१०) हरित वर्ग में ३० शब्द । (११) औषधि (धान्य) वर्ग में २६ शब्द । (१२) जलरुह वर्ग में २७ शब्द । (१३) कुहण (भूस्फोट) वर्ग में ११ शब्द ।
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