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खण्ड] * जैनधर्मानुसार जैनधर्मका संक्षिप्त इतिहास *
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वैराग्य-प्रिय हैं । अतः हम अभी यह नहीं जान सके कि वे क्या करेंगे? हमारी भी बड़ी लालसा है कि पाश्वकुमार किसी योग्य कन्यासे विवाह करें। राजा अश्वसेन राजा प्रसेनजितको साथ लेकर पार्श्वकुमारके पास गये और उनसे शादी करनेको कहा। इसपर पार्श्वकुमारने उत्तर दिया कि पिताजी ! मुझे वैवाहिक जीवन पसन्द नहीं है। अन्तमें पिताजीका अधिक श्राग्रह देख विनीत पार्श्वकुमारने प्रभावतीके साथ अपना विवाह कर लिया। विवाह हो जानेपर प्रभावतीके आनन्दकी सीमा नहीं रही।
एक दिन पावकुमारने लोगोंके झुण्डको एक दिशामें जाते देखा। दरयाफ्त करनेसे मालूम हुआ कि 'कमठ' नामका 'एक बड़ा तपस्वी जो पञ्चाग्नि तपता है, आया हुआ है। इस दृश्यको देखनेकी इच्छा पार्श्वकुमारको भी हुई। वह अपने कुछ नौकरोंके साथ उस स्थानपर आये, जहाँ कमठ चारों ओर मोटी-मोटी लकड़ियाँ जला कर धूनी ले रहा था। चतुर पार्श्वकुमारने अपने ज्ञानसे इन लकड़ियोंमें एक बड़े सर्पको जलते देखा ? यह देख कर उनका हृदय दयासे भर आया। वे बोल उठे कि यह कितनी भारी नासमझी है ? केवल शरीरको कष्ट देनेसे . कहीं तप हो सकता है ? तप इत्यादि धर्म अहिंसाके बिना + व्यर्थ हैं। पार्श्वकुमारकी यह बात सुन कर कमठ तपस्वीने कहा-'हे राजकुमार ! धर्मके विषयमें तुम क्या जानते