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खण्ड] * जैनधर्मानुसार जनधमका संक्षिप्त इतिहास *
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रानीने दूसरे दिन यह बात राजासे कही। राजाने पण्डितोंसे इस स्वप्नका अर्थ पूछा। इसपर पण्डितोंने कहा कि आपके बड़ा पराक्रमी और प्रतिभाशाली पुत्र जन्म लेगा। समय आनेपर श्रीवामादेवीने एक पुत्र-रत्नको जन्म दिया। इस महान् आत्मा का जन्म, जिनका नाम 'पार्श्वनाथ' रक्खा गया और जो तेईसवें तीर्थकर हुये, आजसे करीब २६८१ वर्ष पूर्व हुआ था। इनके लालन-पालनकेलिये अनेक धाय रक्खी गई । जब यह समझदार हुये तो इन्हें संसार अच्छा न लगता था और ये साधुपनेकी ओर अपने विचार रखते थे। ___ उसी समय 'प्रसेनजित' नामका एक राजा था, जो कुशस्थल नामक राजधानीपर राज्य करता था। उसके 'प्रभावती' नामकी एक बड़ी सुन्दर और होनहार कन्या थी। श्रीप्रभावतीने पार्श्वनाथकी बड़ी महिमा और तारीफ सुनी। इस कारण उसने निश्चय किया कि मैं विवाह उनसे ही करूँगी। जब उसके मातापिताने सुना तो वे बड़े प्रसन्न हुए और निश्चय किया कि जब पुत्री स्वयं वर चुनती है तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है। देखते-देखते हवाके समान यह बात सारे देशमें फैल गई। इधर कलिङ्ग देशका राजा पहलेसे ही प्रभावतीपर अनुरक्त हो रहा था । जब उसने यह सुना तो वह बड़ी सेनाके साथ चढ़कर आया और कुश-स्थल नगरीपर घेरा डाल दिया। इस पर प्रसेनजितने गुप्त रीतिसे राजा अश्वसेनसे मददकी प्रार्थना की। उन्होंने सहायता करना स्वीकार किया और फौज तैयार