Book Title: Jail me Mera Jainabhayasa
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 443
________________ खण्ड] * परमेष्ठी अधिकार * JA - उत्तर-उनका ध्यान मरकतमणिके समान में करना चाहिये। उक्त गुणों के अलावा उपाध्यायजी : गुण सम्पन्न होते हैं। ‘णमो लोए सव्वसाहणं 'णमो लोऐ सव्वसाहूणं' इस पदके द्वारा साध किया गया है। । एक प्रश्न-उन साधुओंके क्या लक्षण हैं ? ही भ्रा जो किसी प्रकारकी हिंसा नहीं करे; किस ता है : बोले अर्थात् सदा सत्य बोले; बगैर दी हुई निज ले पूर्ण ब्रह्मचर्य पाले, किंचित मात्र परिग्रहावसे नहीं रक्खे; तीन करण और तीन योगसे अर्थानों कायसे कोई पाप करे नहीं, करावे नहीं और ५. नहीं है, में इन्द्रियों-नेत्र, नासिका, कर्ण, जिह्वा आ.. तीनों करण और तीनों योगोंसे वशमें रक्खे, क्रोध, मान, माया और लोभको तीन करण और तीन योगसे करे नहीं, करावे नहीं और करतेको 'भला जाने नहीं । साधु अनेक परिषहोंको जीतते हैं। जैसे अगर शुद्ध और निर्दोष आहार और जल नहीं मिलता है तो प्रसन्नता और शान्तिभावसे क्षुधा और तृषा परिषहको सहन करते हैं। जाड़ोंमें अग्निसे तापते । नहीं; कम्बल, सौर मादि प्रौढ़ते नहीं, सिर्फ मर्यादित मामूली कपड़ा

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