Book Title: Jail me Mera Jainabhayasa
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 471
________________ खण्ड ] * लोक अधिकार *# अनुत्तर विम नवमैवेयकसे एक रज्जु ऊपर म में चारों दिशामें चार इक्कीस योजनकी अंगनाई चौड़े विमान हैं। पूर्व में विज और उत्तर में अपराजित वि देहमान होता है । और उत्कृष्ट तैंतीस सागरकी : इन सर्वार्थसि यह विमान एक लाख योजन है । यह उपरोक्त विमानों मान एक हाथ है और जघ आयु है । यह सब विमानों में हुए | हवा बड़े मोती लटके तीस रागनियाँ निकलती हैं विजय, वैजयन्त, जय पाँचों विमान 'अनुत्तर वि विमानके निवासी देव अनुत्तर विमानवाले तं भवमें मोक्ष प्राप्त करते

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