Book Title: Jail me Mera Jainabhayasa
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 469
________________ खण्ड) * लोक अधिका पाँचवे देवलोकके अन्तमें ' लोकान्तिक देव सम्यक् दृष्टि अवसर चेतानेवाले होते करनेवाले होते हैं। चूंकि कारण ये 'लौकान्तिक' कहला' ये देव नौ प्रकार के होते पूर्व में श्रादित्य देव, अग्निकोण में । नैऋत्य कोण में गदतोय देव, पश्चिम अव्यावाध देव, उत्तरमें अग्निदेव श्री विमानोंमें रहते हैं। नव बारहवें देवलोकसे एक विस्तारमें नवप्रैवेयक देवलो त्रिकमें तीन-तीन प्रतर हैं।

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