Book Title: Jail me Mera Jainabhayasa
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 472
________________ में मेरा जैनाभ्यास * सिद्धक्षेत्र [तृतीय पैतालीस हजार योजनकी आठ योजनकी मध्य में घटती किनारेपर मक्खी ३०२४६ योजनकी परिधि मिय, उलटे छत्रके समान एक योजन ऊपर, सीधे मनुष्य ..न, ३३३ धनुष और ३२ अंगुल सिद्ध भगवान् हैं । 'नवग्रैवेयक, पाँच अनुत्तर विमान न घनोदधि और आकाश वेयक और अनुत्तर विमान हैं । बाद घनवात, उसके बाद । इस प्रकार घिरा हुआ है है। वृक्षकी छाल एकसी दधि कहीं बहुत ज्यादा तू पतली है । पर लोक इस भाँति है:

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