Book Title: Jail me Mera Jainabhayasa
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 444
________________ पद्‌‌य में होन * जेल में मेरा जैनाभ्यास # [तृतीय र शान्तिभाव से शीत परिषह सहन करते हैं। गर्मियों में नहीं, स्नानादि करते नहीं, शान्तिभावसे उष्ण परि रते हैं। डाँस, मच्छर आदि काटते हैं तो मसहरी, धूएँ ग नहीं करते हैं, शान्तिभाव से उस कष्टको सहन करते और निर्दोष वस्त्र नहीं मिलता है तो शान्तिभाव से न करते हैं। चौमासेके चार महीनेके सिवाय उनमें एक महीने से ज्यादा ठहरते नहीं और सदा करते हैं; इस प्रकार जो स्थानका और मार्गका परिउसे शान्तिभाव से सहन करते हैं । भक्षार्थं जायँ या तो रास्ते में या किसीके घरपर बैठते नहीं और खड़े रहते हैं या चलते रहते हैं । चतुर्मासमें या • जैसा स्थान ठहरनेको मिल जाता है तो उसमें ही रहते हैं। अगर कोई गृहस्थ या अन्य अज्ञानी शद कहे या मारे या पीटे तो क्रोध नहीं करते, बल्कि शान्तिभाव से उसे सहन करते हैं । अगर कोई रोग उत्पन्न होता है तो अगर शुद्ध और निर्दोष औषधि मिलती है तो ग्रहण करते हैं, बरना शान्तिभावसे परिषहको सहन करते हैं । साधु लोग पृथ्वी पर या काष्ठके तख्तेपर शयन करते हैं; शीतकालमें पराल - घास की आवश्यकता होती है; अगर वह नहीं मिलती है तो समभावसे कष्टको सहन करते हैं । अगर कोई अज्ञानी उनसे हँसी मजाक करता है तो वे शान्तिभावसे ।

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