Book Title: Jail me Mera Jainabhayasa
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 457
________________ खण्ड * लोक अधिकार * नरकोंके गोत्रसे, उनकी व्यवस्थासे मतलब है की निम्न प्रकार व्यवस्था है। , १–रत्नप्रभा नरक-कृष्णवर्ण भयंक २-शर्कराप्रभा-भाले-बीसे भी अधिक है । ३-वालप्रभा-भड़भूजेकी भाड़की र ऊष्ण रतीसे व्याप्त है । ४-पङ्कप्रभ कीचड़से व्याप्त है । ५-धूमप्रभाअधिक तेज धूयंसे व्याप्त है। ६-तमःप्र. व्याप्त है और ७-तमस्तमःप्रभा-घोरा से व्याप्त है। __ये नरक बिल गोल, त्रिकोण, चौकोण - हैं। उनमें कई-एक संख्यात योजन योजन लम्ब चौड़े हैं। जैसे ढोलको । तरफ पृथ्वी रहती है और भीतर पोल . पृथ्वी स्कन्धोंके बीच ढोलके भीतर बिल होते हैं। ___ नारकी जीव सदा ही अशुभतर लेश्य विक्रिया करनेवाले होते हैं । निरन्तर अशुभ कारण उनके परिणामादि भी सदा अशुभ ५ ___ नारकी जीव परस्पर एक दूसरे । टु करते रहते हैं अर्थात् कुत्तों की तरह निर

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