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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[प्रथम
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एवं यह निश्चय है कि मांस-भक्षणके विना शरीरमें बल और मनमें शौर्य नहीं रह सकता। बहादुरी और बलकी कमी हो जाने के कारण यहाँकी प्रजाके हृदयसे युद्धकी भावना बिलकुल नष्ट होगई, जिससे विदेशी लोगोंने लगातार इस देशपर आक्रमण करके उसे अपने आधीन कर लिया। इस प्रकार अहिंसाके प्रचारसे भारतवर्ष गुलाम होगया और यहाँकी प्रजा पराक्रम-रहित होगई।
अहिंसापर किया गया यह आक्षेप बिलकुल प्रमाण-रहित और युक्ति-शून्य है। इस कल्पनाकी जड़में बहुत बड़ा अज्ञान भरा हुआ है । सबसे पहिले हम ऐतिहासिक दृष्टिसे इस प्रश्नपर विचार करेंगे। भारतका प्राचीन इतिहास डकेकी चोट इस बातको बतला रहा है कि जबतक इस देशपर अहिंसाप्रधान जातियोंका राज्य रहा, तबतक यहाँकी प्रजामें शान्ति, शौर्य, सुख और सन्तोप यथेष्ट रूपसे व्याप्त थे । सम्राट चन्द्रगुप्त और अशोक अहिंसाधर्मके बड़े उपासक और प्रचारक थे । पर उनके काल में भारत कभी पराधीन नहीं हुआ। उस समय यहाँकी प्रजामें जो वीर्य, शान्ति और साहस था, वह आजकलकी दुनियामें कहीं नसीब नहीं हो सकता। अहिंसाधर्मके श्रेष्ठ उपासक नृपतियोंने अहिंसा धर्मका पालन करते हुये भी अनेक युद्ध किये और अनेक शत्रुओंको पराजित किया था। जिस धर्मके अनुयायी इतने पराक्रमशील और