Book Title: Jail me Mera Jainabhayasa
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 417
________________ स्वण्ड] * नवतत्व अधिकार # ३८३ उपकरण शस्त्रादिकका ग्रहण करना आधिकरणकी क्रिया; ६ - अपने व परायेके दुःखोत्पत्तिका जो कारण हो, वह पारतापिकी क्रिया; १० – आयु, इन्द्रिय, बल, प्राणों आदिका वियोग करना प्रारणातिपातकी क्रियाः ११ – रोगाधिकता के कारण प्रमादी होकर रमणीय रूपका आवरण करना दर्शन क्रिया; १२ - प्रमाद के कारण वस्तुके स्पर्शनार्थं प्रवर्त्तनेसे स्पर्शन क्रिया; १३विषयोंके नये-नये कारण मिलाना प्रात्ययिकी क्रिया; १४ - स्त्रीपुरुषों व पशुओं के बैठने सोने- प्रवर्त्तने के स्थान में मल-मूत्र आदि क्षेपण करना समंतानुपात क्रिया; १५ - बिना देखी शोधी भूमिपर बैठना, शयन करना आदि अनाभोग क्रिया; १६ - परके करने योग्य क्रियाको स्वयम् करना स्वहस्त क्रियाः १७ -- पापोत्पादक प्रवृत्तिको भला समझना व श्राज्ञा करना निसर्ग क्रिया; १८आलस्य से प्रशस्त क्रिया न करना अथवा अन्यके किये हुए पापाचरणका प्रकाश करना विदारण क्रिया; १६ - चारित्रमोहके उपद्रवसे परमागमकी आज्ञानुसार प्रवत्तनेमें असमर्थ होकर अन्यथा प्ररूपण करना आज्ञाव्यापादिकी किया; १० - प्रमादसे व श्रज्ञानता से परमागमकी उपदेश की हुई विधिमें अनादर करना अनाकाङ्क्षा क्रियाः २१ - छेदन-भेदन आदिकी क्रियामें तत्परता होना तथा अन्यके आरम्भ करनेमें हर्प मानना आरम्भ क्रिया; २२ -- परिग्रहकी रक्षाकेलिये प्रवृत्ति करना पारिप्राहिकी क्रिया: २३ - - ज्ञान दर्शनादिकमें कपटरूप उपाय करना माया

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