Book Title: Jail me Mera Jainabhayasa
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 426
________________ ३६२ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय इसी कारण मुक्त जीव लोकके अन्त में जाकर सिद्ध स्थानमें ठहर जाता है । यदि कोई प्रश्न करे कि मुक्त जीवोंमें कुछ भेद है कि नहीं तो उसका उत्तर इस प्रकार है: -- वास्तव में तो सिद्धों में कोई भेद नहीं है अर्थात् सब एकसे हैं, परन्तु हम संसारी जीवों की अपेक्षासे निम्न लिखित अनुयोगों से सिद्धों में भेद-व्यवहार हो सकता है: -- क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येकबुद्धबोधित, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, संख्या और अल्पबहुत्व | क्षेत्रकी अपेक्षासे - भरत, महाविदेह आदि किस क्षेत्र से मुक्त हुए; काल की अपेक्षासे - किस काल में मुक्त हुए लिङ्गकी अपेक्षासेतीन भावलिङ्गों में से किस लिङ्गसे क्षपकश्रेणी चढ़ कर मुक्त हुए; तीर्थकी अपेक्षा - किस तीर्थंकरके तीर्थ में मुक्त हुए व तीर्थंकर होकर मोक्ष प्राप्त की या सामान्यकेवली होकर मोक्ष प्राप्त की; चारित्रकी अपेक्षासे - किस चारित्र से कर्मोंसे मुक्त हुए; प्रत्येकबुद्ध बोधित की अपेक्षा - मुक्तिको प्राप्त करने केलिये जो साधुवृत्ति धारण की, वह अपने ही ज्ञानसे- समझसे धारण की अथवा दूसरेके उपदेशसे; ज्ञानकी अपेक्षासे - मनः पर्यवज्ञानसे केवलज्ञान हुआ अथवा अवधिज्ञानसे; अवगाहना की अपेक्षासे चौदहवें - * "क्षेत्र कालगतिलिङ्ग तीर्थ चारित्रप्रत्येकवुद्धिबोधितज्ञानावगाहनान्तरसंख्यारूपबहुत्वतः साध्याः । " -उमास्वाति ।

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