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तृतीय खण्ड
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मुमुक्षुओंकेलिये उपयोगी उपदेश ८४००००० योनियोंमेंसे अब्बल तो मनुष्य जन्म पाना ही दुर्लभ है । यदि किसी प्रकार मनुष्य जन्म मिल भी गया तो पूर्ण योग-साधनोंका मिलना तो महा दुर्लभ है। इन सबके मिल जानेपर भी जिस मनुष्यने धर्म-सेवन नहीं किया तो उसका मनुष्य जन्म पाना और सारे साधनोंका प्राप्त होना निष्फल है। अर्थान जो मनुष्य आय देश, उत्तम कुल, नीरोग शरीर, पूर्ण आयु , बल, लक्ष्मी और विद्या श्रादि बातें प्राप्त कर धर्म-सेवन नहीं करता, वास्तवमें वह मानों बीच समुद्र में रहकर नावका त्याग करता है।
(२) संसाररूपी समुद्र में गोते लगाते-लगाते इस जीवने • बड़ी कठिनाईसे और एक लम्बे समयके बाद यह मनुष्य जन्म
रूपी जहाज प्राप्त किया है। इससे धर्म-साधन न करना-केवल भोगोपभोगों में ही इसे लगाये रखना, जहाजको छोड़कर लहरोंको पकड़ना है।