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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[तृतीय
(२१) शास्रकारोंने सच कहा है कि धनका सदुपयोग करनेसे इस जन्ममें सुख मिलता है और दान देनेसे परभव सुधरता है। किन्तु हे बन्धुओ! धनका यदि सदुपयोग न किया जाय, न दान ही दिया जाय तो धन प्राप्त होनेसे क्या लाभ ? ___(२२) लक्ष्मीको शास्त्रकारोंने अनित्य-अस्थिर-चञ्चल आदि विशेषण दिये हैं। वे ठीक ही हैं। इतिहास-पुराण इस बातक दृष्टान्तोंसे भरे पड़े हैं और विचारशील पुरुपोंके प्रत्यक्ष अनुभवोंकी भी इसी प्रकारकी प्रतीति होती है। लेकिन इसको सफल करनेका भी उपाय शास्त्रकारोंने बतलाया है। और वह उपाय है एक दान । दान शास्त्रकारोंने पाँच प्रकारका बताया है:(१) अभय दान, (२) सुपात्र दान, (३) अनुकम्पा दान, (४) उचित दान और (५) कीर्तिदान । इनमें प्रथम दो दान मोक्षके निमित्त और अन्तिम तीन दान इस लोकमें भोगादिकके निमित्त हैं। जो पुरुप अपनी लक्ष्मीको पुण्य कार्य में व्यय करता है, उसे वह बहुत चाहती है। दानी पुरुषोंको बुद्धि खोजती है, कीर्ति देखती है, प्रीति चुम्बन करती है, सौभाग्य सेवा करता है, आरोग्य आलिङ्गन करता है, कल्याण उसके सम्मुख आता है, स्वर्ग-सुख उसे वरण करता है और मुक्ति उसकी वाछा करती है। दान चाहे जिसको दिया जा सकता है, किन्तु सुपात्रको दान देनसे सदा अभीष्ट वस्तुकी प्राप्ति होती है।