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खण्ड ]
* द्रव्य पर्याय अधिकार #
असंख्यात तथा अनन्त प्रदेश हैं और कालका एक ही प्रदेश है, इसलिये काल काय नहीं है ।
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समस्त लोक में जीव, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, पुद्गल ( ऊपर बताये हुए गन्ध, वर्ण, रस, स्पर्श के अलावा कर्मों के पुद्गल आदि ) ठसाठस भरे हुए हैं। अमुक व्यक्ति प्रश्न करता है कि क्या ये आपस में मिल नहीं जाते ? उत्तर - हर द्रव्यके रूपी अथवा अरूपी परमाणु एक दूसरे से मिले हुये भी हैं और साथ-साथ अलहदा भी हैं। उदाहरणार्थ, किसी कमरे में अनेक दीये बला दो, हरएककी रोशनी एक दूसरे के साथ मिल जायगी और अगर एक दीयेको अलग उठा लाओ तो उसकी रोशनी भी अलग हो जायगी। इसी प्रकार जो तमाम द्रव्य आपस में मिले हुये हैं, पर जहाँ जिसकी आवश्यकता होती है, वहाँ वह एक दीयेकी रोशनी के समान जुदा होजाता है ।
शास्त्रकारोंने धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, इस प्रकार अस्तिकाय तीन बतलाई हैं । धर्मास्तिकाय,
धर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, तीनों लोकों में व्याप्त हैं । इनके प्रत्येकके कुछ विभागको 'देश' कहते हैं; और जो सिर्फ एक प्रदेशावलम्बन करता है, उसे 'प्रदेश' कहते हैं ।
कालका कोई हिस्सा नहीं होता है।
वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शके पुद्गलोंका समस्त पिण्ड जो लोक में भरा है, उसे 'स्कन्ध' कहते हैं। उसके विभागको 'देश'