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* जेलमें मेरा जनाभ्यास *
[प्रथम
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एक समय उन्होंने अपने माता-पितासे साधुपना लेनेकी इच्छा प्रकट की। यह सुनकर उन्हें अत्यन्त दुःख हुआ और
आग्रहपूर्वक पुत्रसे उन्होंने कहा कि जब तक हम जीवित हैं, तब तक आप ऐसा न करो। जिसको उन्होंने स्वीकार कर लिया। कुछ समयके बाद सिद्धार्थ राजा'का देहान्त हो गया। श्रीवर्धमानकुमारके बड़े भाई 'नन्दिवर्धनजी' श्रीवर्धमानकुमारको गद्दीपर बैठाना चाहते थे, पर उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया और श्रीनन्दिवर्धनजीको ही गद्दीपर बैठाया गया। ___ कुछ समय बाद श्रीवर्धमानकुमारने दीक्षा ग्रहण करनेका विचार प्रकट किया। इसपर श्रीनन्दिवर्धनके दुःखकी कोई सीमा न रही और अत्यन्त आग्रहपर उन्होंने कुछ समयके लिए अपने विचारोंको स्थगित कर दिया, परन्तु उन्होंने गृहस्थीमें रहते हुये साधु-जीवन व्यतीत करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने एक वर्ष व्यतीत किया। दूसरे वर्ष उन्होंने स्वर्ण-मुद्रा का दान देना प्रारम्भ कर दिया। बादको बड़े समारोहके साथ लाखों स्त्री-पुरुषोंके समक्ष पञ्चमुष्टी लौंच किया और साधु-जीवन ग्रहण किया अर्थात् आजसे मैं किसी भी प्रकारका पाप कर्म, मन, वचन और कायसे नहीं करूंगा और सम्पूर्ण रूपसे अपनी श्रात्म-शुद्धि करूँगा । इस समय इनकी आयु ३० वर्षकी थी।
महात्मा तो बहुत हो चुके हैं, पर श्रीवर्धमानस्वामीसे बढ़कर बहुत कम हुये हैं। उन्होंने साधुपना धारण करते ही बहुत कड़े