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महावीर से दीर्घकालीन और घनिष्ठ सम्बन्ध था। जैन कथा-परम्परा की पौराणिक परम्पराओं में श्रेणिक के प्रश्न और महावीर के उत्तर अथवा उनके प्रमुख गणधर इन्द्रभूति गौतम के उत्तर से प्राप्त होती है। श्रीचन्द्रकृत 'कहाकोसु' में श्रेणिक तथा उनके पुत्रों का वृत्तान्त आया है। एक दिन राजा श्रेणिक महावीर के उपदेश सुनने विपुलाचल पर्वत पर गये और वहाँ
___ "धर्म-साधना के प्रभाव से उनके सम्यक्त्व की परिपुष्टि होकर सप्तम नरक की आयु घटकर प्रथम नरक की शेष रही। यही नहीं, उनके तीर्थकर नाम कर्म का बन्ध भी हो गया। इस अवसर पर राजा श्रेणिक ने गौतम गणधर से पूछा कि हे भगवान्, मेरे मन में जैन मत के प्रति इतनी महान् श्रद्धा हो गयी है, तथापि व्रत-ग्रहण करने की मेरी प्रवृत्ति नहीं होती। गणधर ने उत्तर दिया कि तुम्हारी नरक की आयु बँध चुकी है । देव आयु को छोड़कर अन्य किसी भी गति की आयु जिसने बाँध ली है, उसमें व्रतग्रहण करने की योग्यता नहीं होती।' श्रेणिक ने जब से जैन धर्म ग्रहण किया तब से उनकी धार्मिक श्रद्धा दृढ़ होती गयी।
श्रेणिक-पुत्र-अभय कुमार ने मुनि-दीक्षा ग्रहण की और चे मोक्षगामी हुए। दूसरे पुत्र बारिषेण ने भी धर्म-साधना करके मुनिव्रत धारण किया। तीसरे पुत्र गजकुमार ने भी मुनि-दीक्षा ग्रहण की।
कौशाम्बी नरेश-शतानीक और उदयन तथा उज्जैनी नृप चण्डप्रद्योत। चेटक की पुत्री मृगावती का विवाह शतानीक राजा से हुआ था। उनके पुत्र उदयन का विवाह उज्नी -नरेश चण्डप्रद्योत की कन्या वासवदत्ता से हुआ था। बौद्ध साहित्यिक परम्परानुसार उदयन का और बुद्ध का जन्म एक ही दिन हुआ था। यह एक सुदृढ़ जैन परम्परा है कि जिस रात्रि में प्रद्योत के मरण के पश्चात् पुत्र पालक का राज्याभिषेक हुआ, उसी रात्रि महावीर का निर्वाण हुआ था। इस प्रकार ये उल्लेख दोनों महापुरुषों के समसामयिक तथा तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं।
महात्मा गौतम बौद्ध-भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध समकालीन थे। तत्कालीन समाज-व्यवस्था में परिवर्तन लाने के हेतु दोनों महामानवों ने क्रमशः प्राकृत
और पालि भाषा में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और पंचशील आदि की महिमा जनसाधारण को समझायी तथा उसे सूत्रबद्ध करके उनके अनुयायियों ने आगम-त्रिपिटक आदि ग्रन्थ रूप में स्थायित्व प्रदान किया।
महावीर और युद्ध का एक-दूसरे से कभी साक्षात्कार हुआ है, ऐसा कोई उल्लेख किसी आगम ग्रन्थ में नहीं मिलता। बौद्ध वाङ्मय में प्रयुक्त महावीर विषयक प्रसंगों की परख के दृष्टिकोण से निर्मिति हुई है । प्रचलित बुद्ध निर्वाण संवत् और वीर निर्वाण
1. डॉ. हीरालाल जैन : महानौर : युग और जीवन दर्शन, पृ. 35
18: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर