Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ ( ६ ) खरो, जो मेले मुज नार ॥ पृथ्वीपति पधरात्रीयो, सहुको करे जुदार ॥ ५ ॥ मंत्रीसर आयो घरे, शोचे बुद्धिनिधान ॥ किविध ते नारी मिले, रीकें किम राजान ॥ ६ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ शील कहे जग हुं वमो ॥ ए देश ॥ राग रामग्री ॥ ॥ मंत्री तस कीधुं किस्युं, सत्रकार तिहां मांड्यो रे ॥ मरण तणे मेले करी, सह प्रमाद तिथे बांड्यो रे ॥ मं० ॥ १ ॥ चिहुं दिशि चिहुं पोले सदा, मागे ते तसु दीजे रे ॥ नाकारो नवि कीजीए, नाम गम पूर्वी जे रे ॥ मं० ॥ २ ॥ सोफी संन्यासी घणा, जोगी जंगम जाटो रे ॥ बंजण अवधूत कापमी, मिलीया नरना थागे रे ॥ मं० ॥ ३ ॥ एम करतां बहु दिन गया, परदेशी पूर्वतो रे ॥ गाम नाम नवि को कहे, पूर्वी पूर्वी विरतंतो रे ॥ मं० ॥ ४ ॥ एक आयो परदेशश्री, मुहते नयणे दीठो रे ॥ आदर दीधो अति घणो, मुह कराव्यो मीठो रे ॥ मं० ॥ ५ ॥ कहो तुमे किहांथी यवीया, कि देशांतर वासी रे ॥ कवण नगर तुमे निरखीयां, तव ते कहे विमासी रे ॥ मं० ॥ ६॥ सठ तीरथ में कीयां, बहु धरती में दीठी रे ॥ कण For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

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