Book Title: Hamir Raso Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur View full book textPage 6
________________ प्रस्तावना हम्मीरदेव चौहान की कीर्ति शताब्दियों से सर्वत्र गायी जाती है । उनको कीति-गाथा अनेक कवियों ने समय-समय पर रच कर जन-जन में प्रसारित की अतः हम्मीर सम्बन्धी रचनाओं की एक लम्बी परम्परा है । गत कोई ७०० वर्षों में संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी एवं हिन्दी में कई कवियों के रचित छोटे-मोटे काव्य प्राप्त होते हैं । अब उनमें से बहुत से प्रकाशित भी हो चुके हैं । कई काव्य पूरे नहीं मिलते, उनके पद्य प्राप्त होते हैं। कई काव्यों में पीछे से काफी परिवर्तन भी हुआ लगता है। उनके पद्यों की संख्या विभिन्न प्रतियों में कम-बेसी पायो जाती है तथा पाठ-भेद भी प्रचुर परिमाण में दिखाई देते हैं। ऐसे काव्यों में महेश कवि का 'हम्मीर रासो' भी एक है। जिसकी अनेकों हस्तलिखित प्रतियां मिलती हैं, यह उसकी लोकप्रियता व प्रचार का सूचक है। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से प्रकाशित होकर 'रासो' का यह संस्करणपाठकों के सामने है। वीर हम्मीर सम्बन्धी छोटे-मोटे काव्य तो कई मिलते हैं। किन्तु, सबसे उल्लेखनीय संस्कृत महाकाव्य जैनाचार्य नयचन्द्रसूरि रचित 'हम्मीर महाकाव्य' है जो राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान द्वारा ही सन् १९६८ में सुसंपादित होकर प्रकाशित हो चुका है। इसके सम्पादक पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी हैं। इससे पहले यह ग्रन्थ श्री नीलकण्ठ जनार्दन कीर्तने द्वारा सम्पादित होकर सन् १८७६ में विस्तृत अंग्रेजी प्रस्तावना के साथ प्रकाशित हुआ था। मुनि जिनविजयजी द्वारा सम्पादित नया संस्करण बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस काव्य की प्राचीनतम हस्तलिखित प्रति संवत् १४८६में लिखित कोटा के जैन भण्डार से मैंने उन्हें भिजवायी थी। इस काव्य की दीपिका नामक एक प्राचीन टीका का भी जितना अंश मुनिजी को प्राप्त हुआ, इस संस्करण में प्रकाशित कर दिया गया था। मुनिजी के कथनानुसार प्रस्तुत दोपिका, मूल काच्य के रचयिता नयचन्द्र सूरि के ही किसी विद्वान् शिष्य ने रची है। इस संस्करण में ५० पृष्ठों में लिखित मुनिजी का 'हम्मीर महाकाव्य-एक पर्यालोचन' और डा० दशरथ शर्मा का प्रस्तावित परिचय और 'हम्भीर महाकाव्य में ऐतिह्य सामग्री' विशेष रूप से पठनीय व उल्लेखनीय है। साथ ही प्रथम संस्करण की अंग्रेजी प्रस्तावना भी इस संस्करण में दिए जाने से सभी दृष्टियों से यह नया संस्करण बहुत ही महत्व का बन गया है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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