Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 9
________________ स्वर्गीय पूज्य गुरुदेव एक अजात-शत्रु मुनिपुंगव थे. जन-जन के हृदय में उनके प्रति अगाध श्रद्धा थी. इसी श्रद्धा के बल पर उनकी स्मृति में निकलवाले इस ग्रंथ के प्रति जन-जन के हृदय में सत्कारसन्मान की भावना की उदारता ने प्रस्तुत ग्रंथ के मुद्रण को आर्थिक असह्योग से पूर्णतः बचा लिया है. किन्तु समाज में ईर्ष्या तथा असहयोग की भावना की न्यूनता नहीं है. अतएव मुझे काफी आलोचना का शिकार होना पड़ा है. सम्भव है ऐसी थपकियां मुझे आगे भी मिलती रहेंगी, परन्तु इस आलोचना को मैंने अमृत समझा और उसका पान कर अपने को अमर बनाने का ही प्रयास किया है और आगे भी मेरा यही प्रयास बना रहेगा. वर्तमान में विराजित मेरे ज्येष्ठ गुरुभ्राताजी श्रीब्रजलाल महाराज की बलवती प्रेरणा पर ही यह विराट् आयोजन सम्पन्न हो सका है. अतः मैं स्वामीजी महाराज का पूर्ण आभारी हूं. प्रधान सम्पादकजी, सम्पादक-परिवार, तथा कला सम्पादकजी के सतत, अविश्राम श्रम ने ही इस ग्रंथ को अधिक-सेअधिक उपादेय बनाया है अतः उनकी ओर तो मेरी कृतज्ञता सदा बनी ही रहेगी. उन मुनिराजों और सतियों का भी आभारी हूँ जिन्होंने कुछ भी इधर सहयोग दिया है. सती श्री उमरावकुंवरजी, स्व० गुरुदेव की सुशिष्या हैं. वे सुसंस्कृता हैं, विदुषी हैं, समय-समय पर इस आयोजन में उनकी सुविचारणा से पर्याप्त सहयोग मिला है. जैन-संस्कृति की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया है, फिर भी स्खलना होना असम्भव नहीं है. इसके लिए क्षमापना है. -मधुकर मुनि Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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