Book Title: Gyanchakshu Bhagwan Atma
Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 17
________________ ज्ञानचक्षु: भगवान आत्मा अयं तु व्यक्तिरूप मोक्षविचारो वर्तते। ___ तथा चोक्त सिद्धान्ते - 'निष्क्रियः शुद्धपारिणामिकः' निष्क्रिय इति कोऽर्थः ? बंधकारणभूता या क्रिया रागादिपरिणतिः तद्रूपो न भवति, मोक्षकारणभूता च क्रिया शुद्धभावना -परिणतिस्तद्रूपश्च न भवति। ततो ज्ञायते शुद्धपारिणामिकभावो ध्येयरूपो भवति ध्यानरूपो न भवति। कस्मात् ? ध्यानस्य विनश्वरत्वात्। तथा योगीन्द्रदेवैप्युक्तं - णवि उपज्जइ णवि मरइ बंध ण मोक्खु करेइ। जिउ परमत्थे जोइया जिणवर एउ भणेइ॥ जो शक्तिरूप मोक्ष है, वह तो शुद्धपारिणामिक है, प्रथम से ही विद्यमान है। यह तो व्यक्तिरूप मोक्ष का विचार चल रहा है। इसी प्रकार सिद्धान्त में कहा है कि -- 'निष्क्रियः शुद्धपारिणामिकः' अर्थात्, शुद्धपारिणामिक (भाव) निष्क्रिय है। निष्क्रिय का क्या अर्थ है? (शुद्धपारिणामिकभाव) बन्ध के कारणभूत जो क्रिया-रागादिपरिणति, उसरूप नहीं है और मोक्ष के कारणभूत जो क्रिया-शुद्धभावनापरिणति, उसरूप भी नहीं है; इसलिए ऐसा जाना जाता है कि शुद्धपारिणामिकभाव ध्येयरूप है, ध्यानरूप नहीं है। किसलिए? क्योंकि ध्यान विनश्वर है (और शुद्धपारिणामिकभाव तो अविनाशी है)। श्री योगीन्द्रदेव ने भी कहा है कि - ‘ण वि उपज्जइ ण वि मरइ बन्धु ण मोक्खु करेइ। जिउ परमथे जोइया जिणवर एउ भणेइ ॥' (अर्थात्, हे योगी! परमार्थ से जीव, उपजता भी नहीं है, मरता भी नहीं है और बन्ध-मोक्ष नहीं करता -- ऐसा श्री जिनवर कहते हैं।)

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