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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
शुद्धजीवत्वशक्ति लक्षणभूत जो पारिणामिकभाव है, उसमें कोई भेद नहीं है, उस पारिणामिकभाव की अपेक्षा से तो सभी जीव समान हैं। ___ द्रव्यसंग्रह की तेरहवीं गाथा की टीका में चौदह मार्गणाओं का वर्णन है। उसमें भव्यमार्गणा में भव्यत्व और अभव्यत्व, ऐसे दो प्रकार कहे हैं। वहाँ शिष्य प्रश्न करता है कि शुद्धपारिणामिक परमभावरूप शुद्धनिश्चय से जीव, गुणस्थान-मार्गणास्थानरहित है - ऐसा आपने कहा था और यहाँ तो मार्गणा में भी भव्यत्व - अभव्यत्वरूप पारिणामिकभाव कहा है - तो पूर्वापर विरोध हुआ?
उत्तर में कहा है कि नहीं, क्योंकि पहले तो शुद्धपारिणामिकभाव की अपेक्षा से गुणस्थान तथा मार्गणस्थान का निषेध किया था और यहाँ भव्यत्व-अभव्यत्वमार्गणा में जो कहा, वह तो अशुद्ध -पारिणामिकभाव है। इस प्रकार विवक्षाभेद से दोनों कथन समझना चाहिए। ___'शुद्ध और अशुद्ध, ऐसे भेद से पारिणामिकभाव दो प्रकार का नहीं है परन्तु पारिणामिकभाव, शुद्ध ही है।' ऐसा कदाचित् कहो तो वह योग्य नहीं है क्योंकि सामान्यरूप से उत्सर्ग व्याख्या से यद्यपि पारिणामिकभाव तो शुद्ध ही कहा जाता है, तथापि अपवादरूप व्याख्यान से अशुद्धपारिणामिकभाव भी है। इसी अपेक्षा से तत्त्वार्थसूत्र में जीव-भव्याभव्यत्वानि च - इस प्रकार पारिणामिकभाव के तीन प्रकार कहे हैं। जो शुद्धचैतन्यरूप जीवत्व हैं, वह अविनाशी होने से शुद्धद्रव्याश्रित है; इसलिए उसे शुद्ध - द्रव्यार्थिकरूप शुद्धपारिणामिकभाव कहा जाता है और जो कर्मजनित दश प्राणरूप जीवत्व है, वह जीवत्व तथा भव्यत्व और अभव्यत्व