Book Title: Gyanchakshu Bhagwan Atma
Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 224
________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा कारण है। ध्रुवदृष्टि से ध्रुवतत्त्वरूप पारिणामिकभाव को देखने पर उसमें बन्ध-मोक्ष के हेतुरूप क्रिया नहीं है; इसलिए उसे निष्क्रियभाव कहा जाता है । इस प्रकार द्रव्य - अपेक्षा से निष्क्रिय और पर्याय - अपेक्षा से सक्रिय - ऐसा आत्मा का स्वरूप है। 215 निष्क्रिय के भी अनेक अर्थ हैं - यहाँ बन्ध-मोक्ष की क्रिया जिसमें नहीं है अथवा जिसमें उत्पाद-व्ययरूप क्रिया नहीं है, उसे निष्क्रिय कहते हैं, अर्थात् ध्रुवद्रव्य को निष्क्रिय कहते हैं और पर्याय को सक्रिय कहते हैं । प्रवचनसार की ८०वीं गाथा में जो अभेद अनुभूति हुई, उसे निष्क्रिय चिन्मात्रभाव कहा है, वह निर्मल पर्याय की बात है । भेद के विकल्परूप क्रिया छूट गयी और निर्विकल्प चैतन्य के अनुभव में उपयोग एकाग्र हुआ, वहाँ उसे निष्क्रिय चैतन्यभाव कहा है । उसमें स्वानुभूति की क्रिया तो है, उत्पाद - व्यय भी है और वह मोक्ष का कारण है परन्तु भेद के विकल्परूप क्रिया का उसमें अभाव होने से उसे निष्क्रिय कहा है । उसे ही यहाँ सक्रिय कहा और द्रव्य को निष्क्रिय कहा है। इसलिए जहाँ जो विवक्षा हो वह समझना चाहिए। प्रश्न - वस्तु क्रियारहित होती है । उत्तर - वस्तु निष्क्रिय और सक्रिय दोनों भावरूप है । पर्याय - अपेक्षा से उसमें सक्रियपना है और द्रव्य - अपेक्षा से निष्क्रियपना है । उत्पादव्ययध्रौव्य युक्त वस्तु है, उसमें उत्पाद - व्यय, क्रियारूप है, परिणमनरूप है और ध्रुव है, वह अक्रिय है - अपरिणामी है । औदायिक आदि चार भाव सक्रिय है, पारिणामिकभाव अक्रिय है। द्रव्य कहो, ध्रुव कहो, पारिणामिकभाव कहो, या अक्रियभाव कहो, यह सब यहाँ एकार्थ सूचक है। पर्याय कहो, उत्पाद-व्यय कहो,

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