Book Title: Gyanchakshu Bhagwan Atma
Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा 249 ___ इस प्रकार ज्ञानस्वरूप आत्मा, परभाव का अकर्ता-अभोक्ता है, यह बात चक्षु के दृष्टान्त से बतलायी। जीव के पाँच भावों का वर्णन करके उनमें से मोक्ष के कारण तीन भाव हैं, यह समझाया। द्रव्य और पर्याय को भिन्नपना किस प्रकार से है, उसकी व्याख्या की और शक्ति तथा व्यक्ति, क्रिया और निष्क्रिय भी बतलाया। ध्यान क्या है और ध्येय क्या है ? यह भी बतलाया और अन्त में धर्मी कैसे आत्मा की भावना करता है? यह समझाकर वैसी भावना का उपदेश दिया है। अब, इस कथन का उपसंहार करते हुए कहते हैं कि यह व्याख्यान परस्पर सापेक्ष ऐसे आगम अध्यात्म के अविरोधपूर्वक कहा है तथा द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन दोनों नयों के अभिप्राय के अविरोधपूर्वक ही कहा गया है। इसलिए यथार्थ है, सिद्ध है, बाधारहित है - ऐसा विवेंकियों को जानना चाहिए....। .. राजकोट में आठ दिन और सोनगढ़ में छह दिन की ऐसी कुल चौदह दिन की ३२० गाथा का यह अलौकिक पारायण अब पूर्ण होता है। भगवान आत्मा की यह अपूर्व भागवत कथा है। बहुत-बहुत प्रकार से विस्तार करके इसमें शुद्धात्मा का स्वरूप समझाया है। इसके द्रव्य-पर्याय जैसे हैं, वैसे बतलाये हैं, उसमें कहीं विरोध नहीं है। इस प्रकार यथार्थ वस्तुस्वरूप पहचानकर विवेकी जीवों को – मुमुक्षु जीवों को अन्तर में अपने शुद्धात्मा की . भावना करना, यही सबका सार है। राग से भिन्न करके ज्ञानस्वरूप

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262