________________
ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
157
ने द्रव्य-पर्यायरूप ऐसा वस्तुस्वरूप का उपदेश किया है। द्रव्य -पर्याय सर्वथा अभिन्न नहीं; कथञ्चित् भिन्न भी है। यदि कथञ्चित् भिन्न न हो और पर्याय, सर्वथा द्रव्य ही हो तो मोक्ष के समय मोक्षमार्गपर्याय का अभाव होने से द्रव्य का ही अभाव हो जाएगा; आत्मा का ही नाश हो जाएगा। वस्तु में द्रव्य, वह द्रव्यरूप है; पर्याय, वह पर्यायरूप है; इन दोनों की जोड़ीरूप वस्तुस्वरूप है - ऐसी अनेकान्तस्वरूप वस्तु, भगवान ने बतायी है।
वास्तविक आत्मवस्तु क्या है और उसमें द्रव्य व पर्याय किस प्रकार से हैं? – यह समझना चाहिए। मोक्षमार्ग की निर्मलपर्याय, ध्रुव चिदानन्दस्वभाव के आश्रय से प्रगट होती है परन्तु जो पर्याय . प्रगट हुई, वह स्वयं ध्रुव नहीं है। त्रिकाली पारिणामिकस्वभाव में एकाग्र होने पर औपशमिक आदि निर्मल अवस्था हुई, वह उत्पाद -व्ययरूप है; इसलिए ध्रुव से कथञ्चित् भिन्न है; सर्वथा भिन्न नहीं . तथा सर्वथा अभिन्न नहीं। यदि सर्वथा भिन्न होवे तो वस्तु, अवस्थारहित हो जाए; इसलिए वस्तु ही न रहे और सर्वथा अभिन्न होवे तो पर्याय का नाश होने से द्रव्य का भी नाश हो जाए; इसलिए वस्तु ही न रहे; अत: 'कथञ्चित् भिन्न है'। ___'जाना और होना' वह पर्याय में है; टिकना' वह द्रव्य में है - ऐसी वस्तु को शास्त्रभाषा में उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् कहा है। ध्रुवता, अर्थात् टिकना; उत्पाद-व्यय, अर्थात् बदलना... | कायम रहकर, बदले और बदलने पर भी कायम रहे – ऐसा वस्तु का सत्स्वरूप है। द्रव्य, अविनाशी; पर्याय, नाशवान् – दोनों सर्वथा एक नहीं हैं। आत्मा की अपने स्वरूप में श्रद्धा-ज्ञान रमणतारूप जो दशा है, वह मोक्षदशा का कारण अवश्य है परन्तु वह दशा,