Book Title: Gyanchakshu Bhagwan Atma
Author(s): Harilal Jain, Devendrakumar Jain
Publisher: Tirthdham Mangalayatan

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Page 221
________________ 212 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा निश्चय है – ऐसा पण्डित बनारसीदासजी ने परमार्थवचनिका में कहा है; उसमें भी यही ध्वनि है। निष्क्रिय शुद्ध पारिणामिक – यह सिद्धान्त वाक्य है - ऐसा यहाँ (टीका में) कहा है परन्तु यह सूत्र किसमें आता है - इसका उल्लेख नहीं है। ___ मोक्षमार्ग साधने में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप पर्याय की शुद्धि के अनेक प्रकार पड़ते हैं, उन्हें व्यवहार कहा है और वह क्रियारूप है; द्रव्यस्वभाव सदा एकरूप रहनेवाला है, उसे निश्चय कहा है और वह अक्रिय है। ___ अध्यात्मशैली में रागादि को आत्मा के व्यवहाररूप से नहीं लिया है, परन्तु शुद्धपर्याय को ही व्यवहार कहा है। प्रवचनसार (गाथा ९४) में भी कहा है कि अज्ञानी, अविचलित चेतनाविलासमात्र आत्मव्यवहार को नहीं जानते, वे आत्मा की सच्ची क्रिया को नहीं पहिचानते और देहादि की क्रिया को ही अपनी मानकर जड़-चेतन की मिलावट कर रहे हैं। चेतनाविलासरूप, अर्थात् औपशमिकादि भावरूप क्रिया, वह धर्मी का व्यवहार है। रागादि विकल्पों को आत्मा का सच्चा व्यवहार नहीं कहते हैं। धर्मी उसे नहीं साधते हैं; धर्मी तो निर्मलपर्यायरूप मोक्षमार्ग को साधते हैं; वही उनका व्यवहार है और वही उनकी क्रिया है। बहुत-से लोग पूछते हैं कि आप व्यवहार और क्रिया को मानते हो? हाँ, भाई! धर्मात्मा को मोक्षमार्ग का सच्चा व्यवहार और सच्ची

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