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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
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आयी, मोक्षमार्ग प्रगट हो, तब भव्यत्वशक्ति व्यक्त हुई कहलाती है। अन्दर शक्तिरूप जो योग्यता थी, वह पर्याय में प्रगट हुई। वह प्रगट होने के समय पाँचों लब्धियाँ एक साथ होती है; इसलिए अकेली काललब्धि न कहकर, कालादि लब्धिवश – ऐसा कहा है। ___ मोक्षमार्ग प्रगट होने के समय वैसा पुरुषार्थ, स्वभाव, स्व -पर्याय का काल, नियत और निमित्तरूप कर्म के क्षयादिक - ऐसे एक साथ पाँच लब्धियाँ होती हैं। प्रत्येक पर्याय में पाँच लब्धियाँ एक साथ काम करती हैं। इसमें अकेले काल के सन्मुख देखना नहीं रहा। इस प्रकार लब्धि के वश भव्यत्वशक्ति व्यक्त होती है, अर्थात् जीव, शुद्धस्वभाव के श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र प्रगट . करके मोक्षमार्गरूप परिणमित होता है। स्वभाव में मोक्ष होने की जो योग्यता थी, वह पर्याय में प्रगट होनी लगी, उसे उपशमादि तीन भाव कहते हैं अथवा शुद्धात्मसन्मुख परिणाम इत्यादि अनेक नाम कहे जाते हैं। ऐसा भाव प्रगट हो, वही मोक्ष का साधन है।
जीव की पर्याय में अशुद्धता के समय मोहादि कर्म का उदय निमित्त है – ऐसा बतलाया और शुद्धता होने के समय शुद्धात्म -सन्मुख परिणाम है – ऐसा बतलाया; उस समय कर्म में भी उपशमादि होते हैं; इसलिए आगमभाषा से उस निर्मलभाव को
औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक कहा जाता है तथा आत्मा की ओर से कहो तो; अर्थात्, अध्यात्मभाषा में कहो तो उसे शुद्धोपयोग, परमात्मभावना, आत्मानुभूति इत्यादि कहा जाता है। आत्मा में तो अनन्त गुण के भाव भरे हैं, भाषा में तो अमुक ही आते हैं। उससे अन्तर्मुख ज्ञान द्वारा स्वयं वस्तुस्वरूप लक्ष्य में ले लेवे तो समझ में आये। वस्तु सूक्ष्म है; इसलिए उसकी समझ की बात