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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
प्रतिभास हो, उसमें आत्मा गुप्त नहीं रहता, अर्थात् अप्रगट नहीं रहता, परोक्ष नहीं रहता, गुप्त नहीं रहता, छिपा हुआ नहीं रहता; प्रगट अनुभव में आता है - ऐसा आत्मा का स्वभाव है। ऐसे आत्मा का अनुभव, वह अजर प्याला है... उसे पचाने से जीव अमर होता है। मोक्षदशा प्रगट होने के बाद सादि-अनन्त काल ऐसी की ऐसी रहती है। परवस्तु, राग अथवा पर्यायभेद के लक्ष्य में नहीं अटकते हुए, जो परम आनन्द के ध्येयधाम में चढ़ा है, वह जीव, मोक्ष प्राप्त करता है।
अब, ऐसी मोक्षदशा का कारण क्या है ? जीव के पाँच भावों में से कौन-से भाव, मोक्ष का कारण हैं - यह बतलाते हैं। ___ औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, औदयिक और पारिणामिक - ये पाँच भाव हैं। उनमें औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक और औदयिक - ये चार भाव, पर्यायरूप हैं और शुद्ध पारिणामिकभाव, द्रव्यरूप है। ऐसे परस्पर सापेक्ष द्रव्य-पर्यायस्वरूप आत्मवस्तु है। द्रव्य-पर्याय दोनों का जोड़ा, वह आत्मपदार्थ है।
उपशम आदि चार भाव, प्रगटरूप हैं, पर्यायरूप हैं। उनमें उपशम, क्षयोपशम और क्षायिक - ये तीन भाव निर्मल पर्यायरूप हैं और औदयिकभाव, विकारी पर्यायरूप है तथा जो परमपारिणामिक --भाव है, वह द्रव्यरूप है, वह आत्मा का अहेतुक सहजस्वभाव है; सहज ज्ञान-आनन्द आदि अनन्त स्वभाव, पारिणामिकभावरूप त्रिकाल हैं। ऐसे स्वभाव को देखनेवाला ज्ञान, वह मोक्षमार्ग है। __ औपशमिकभाव - जब अनादि का अज्ञानी जीव, सर्व प्रथम अपने स्वभाव का भान करता है, तब चौथे गुणस्थान में उसे